इंसान को भगवान बनाते हैं गुरु, बिना गुरु कृपा जीवन नहीं शुरू, देश का संविधान महावीर सिद्धांतों पर आधारित: आचार्य श्री सुनील सागर जी

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31 जनवरी 2024 / माघ कृष्ण पंचमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
आचार्य पदारोहण दिवस गुरुचरणों में समर्पित

हजारों फूल चाहिए, एक माला बनाने के लिये,
सैकड़ों दीप चाहिए, एक आरती बनाने के लिये
एक सन्मति सागर ही काफी है
साधारण इंसान को भगवान बनाने के लिए

यह कहते हुये आचार्य श्री सुनील सागरजी ने नोएडा सेक्टर 50 के डायमंड क्राउन बेंक्वेट हाल में समाज द्वारा आयोजित अपने आचार्य पदारोहण समारोह को अपने गुरु को नतमस्तक होकर समर्पित किया। उन्होंने कहा कि जिसके जीवन में तपस्वी सम्राट जैसे गुरु हों, उसके जीवन की शोभा तो कई गुणा बढ़ जाती है। वे तप-त्याग-तपस्या की जीवंत मूर्ति थे। दस हजार से भी ज्यादा उपवास करने वाले भावलिंगी संत, देह से भिन्न आत्मा का चिंतन करने वाले, हमेशा नि:शसक्त बोधि रखने वाले, तपस्वी सम्राट का उपकार कभी भुलाया नहीं जा सकता।

हीरा अंगूठी में हो, तो अंगूठी की कीमत बढ़ जाती है,
हीरा गले में हो, तो हार की कीमत बढ़ जाती है
जीवन में गुरु हो तो, जीवन की कीमत बढ़ जाती है।

जिनमें मेरे भाव, मेरे परिणाम उज्ज्वल रहे, यह जीवन आत्म कल्याण के लिए मिला है और आत्मकल्याण के लिये गुरु आवश्यक है। उनके बिना कोई बढ़ नहीं सकता। जब गुरु में आस्था हूै तो उलझनों में भी रास्ता है।

गुरु की आंखें बोलती हैं, मुख की क्या बात।
धन्य-धन्य वह काय है, जिस पर गुरु का हाथ।।


उपाध्याय श्री शशांक सागरजी ने अद्भुत संयोग को स्मरण करते हुये कहा कि गुरुवर की दीक्षा महावीर जन्मकल्याणक पर हुई, तो मेरी भी और जिस दिन गुरुवर का आचार्य पदारोहण हुआ, उसी दिन मुझे उपाध्याय पद। यह जीवन उन्हीं के साथ नई ऊंचाई की ओर बढ़ता चले।

आचार्य श्री ने यह भी कहा कि सम्यकदर्शन के लिए गुरु की आवश्यकता है। देशना लब्धि के बिना सम्यगदर्शन नहीं हो सकता। गुरु को इतना सम्मान देते हैं, क्योंकि वे ही देशना उपदेश के माध्यम से जीवों को मोक्ष की राह दिखाते हैं। रत्नत्रय की प्राप्ति करना हो या स्वरूप को साधना हो, तो गुरु ही शरण हैं। जो गुरु से गांठ बांध लेता है, उसके जीवन की हर गांठ खुल जाती है।

75वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर आचार्य श्री ने कहा कि गणतंत्र की नींव आदिनाथ ने डाली, चक्रवर्ती भरत और फिर भगवान महावीर स्वामी के नाना राजा चेटक के समय बहुत सुंदर गणतंत्र की व्यवस्था स्थापित हुई थी।

तीर्थंकर महावीर ने जगत को जियो और जीने दो का संदेश दिया। अहिंसा पूर्वव्यवहारिक और जनकल्याणकारी है। अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे जीवन उपयोगी सिद्धांत दिये। यह ऋषभदेव की संस्कति नहीं, यह प्रकृति है, प्रकृति में जियो, यही संस्कृति है। किसी के तीर्थ पर अतिक्रमण मत करो। प्रेम-सौहार्द से रहना प्रकृति है, हमारे देश की संस्कृति है, अत्याचार ना करें। हमारे भारत का संविधान तीर्थंकर महावीर के सिद्धांतों पर आधारित है जिसे डॉ. आम्बेडकर, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने स्थापित किया।

नोएडा सेक्टर 50 से सुदर्शन न्यूज चैनल पर सनातन की दो धाराओं पर साक्षात्कार और सवालों के जवाबों के बाद पार्श्व विहार होते हुये 35 पिच्छी के साथ आचार्य श्री का संघ मंगलवार को विश्वास नगर में पहुंचा और दिल्ली को पुन: दो माह बाद यह सौभाग्य मिल गया।

आचार्य श्री ने जोर देकर कहा कि जीवन में व्यसन ना हो, अनैतिकता का संचार ना हो। विश्व को गणतंत्र बनाने में भी भगवान महावीर के सिद्धांतों की आवश्यकता है। सभी को जैन धर्म की जानकारी दें। प्रण करें कि रोज किसी ना किसी को जैन धर्म, तत्व, अहिंसा, दिगंबर साधु, जैन सिद्धांत, मुनियों की तपस्या, के बारे में बतायें, जन-जन तक जैन धर्म पहुंचे, पता चले महावीर स्वामी कौन थे। दिगंबर संतों की साधना, ध्यान, आत्मस्वरूप में लीन रहने वाले, ईश्वर का सच्चा रूप जो, देह की भी फिक्र नहीं करते, अन्य तक यह बात पहुंचायें। देश में, समाज में शांति, सदाचार की भावना के लिये प्रयास करते रहें।