मोदी जी! दस सालों में बदल गये: शाकाहारी झंडा उठाने वाली सरकार का मांस में रिकार्ड तोड़ निर्यात के बाद जिंदा पशुधन पर नजर

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॰ 2014 में मोदीजी का कथन : पशुधन विदेशियों को काट-काट कर क्यों भेजती सरकार, मेरा कलेजा चीखता है
2023 : शंकर के नंदी, किसान के बैल, गोमाता की बछियों को विदेशों में कटने के लिये जिंदा भेजेगी सामान के रूप में, अब मोदी जी, भारत का कलेजा कराह रहा है!
॰ सरकार गौशालाएं बनाये या ना बनाये, पर उनके बछड़ो-बछियों के जिंदा निर्यात की कभी ना सोचे, क्योंकि बाद में गोशालाएं अर्थहीन हो जाएंगी

॰ शंकर की नदी की मूरत के लिये अदालत में लड़ते हो, पर जिंदा नंदी और किसाने के बैलों का जिंदा निर्यात, कटने-पकाने खाने के लिये

19 जून 2022/ आषाढ़ शुक्ल एकम/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ EXCLUSIVE/शरद जैन

यह निर्विवाद सत्य है कि भरत चक्रवर्ती के नाम पर पड़ा ‘भारत’ देश करोड़ों देवी-देवताओं की, भगवानों की, तीर्थंकरों की, गुरुओं की जन्मस्थली है, कर्मस्थली है और मोक्ष स्थली है, जहां श्री रामभी, श्री कृष्ण भी जन्में, वहीं तीर्थंकर श्री आदिनाथ से महावीर स्वामी भी। जहां से अहिंसा और शाकाहार का शंखनाद पूरे विश्व में होता है और उसी का शांति, प्रेम, भाईचारे के लिये पूरी दुनिया उसका मुख देखती है। यही दुनिया का वह देश है, जिसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया, हर दिल को जीतने की कोशिश की।

हां, यह वही भारत है जहां गौमाता को पूजा जाता है, जहां मुख्य व्यवसाय आज भी खेती है, जिसके लिए किसान बैलों से हल द्वारा जोतकर धरती को सोना-सोना करता है। जहां हर बच्चा गाय-भैंसों का दूध पीकर युवा बनता है। जहां हर प्राणी को जीने का अधिकार वहां के संविधान ने दे रखा है। जहां के प्रधानमंत्री शाकाहार का गुणगान करते हैं, नवरात्र के व्रत रखते हैं।

आज उसी शाकाहार, प्राणी प्रिय सरकार, वो भी नरेन्द्र मोदी जैसे कुशल, अनुभवी, ज्ञानवान के नेतृत्व में, एक ऐसा कानून बनाने की कोशिशों में लगी है, जिसमें जानवरों, पशुओं को ‘सामान’ समझा जाये और सामान की तरह उनको बेचा जाये, विदेशों में। सान्ध्य महालक्ष्मी – चैनल महालक्ष्मी को सीधा सीधा यह कहने में संकोच नहीं कि जिंदा बैलों को, जिंदा भैसों को, जिंदा बछड़े बाछियों को, जो आगे चलकर किसान के हाथ बनेंगे, जो आगे चलकर जन्मे भारतीयों को अपना दूध पिलाकर बड़ा करेंगे। किसलिये बेचेंगे जिंदा? उनको काटने के लिये, मारने के लिये, इराक में, वियतनाम में, सऊदी अरब, मलेशिया और भी देशों में। सरकारी संस्था एपीडा के आंकड़ों की माने तो 2021-22 में मीट का निर्यात 30,953.20 करोड़ को पार कर चुका है। पर मीट तो वहां पहुंच कर ठण्डा हो जाता है, वो मजा नहीं देता, इसलिये अब जिंदा निर्यात किया जाएगा।

बहुत शर्म महसूस होती है, धर्म के सहारे जो सरकार आज सत्तारूढ़ है, जो कभी गौमाता पर राजनीति, जो कभी जय श्रीराम, हर-हर महादेव, शंकर के नंदी, जय बजरंग बली के नाम पर वोट बटोरती है, हिंदू-मुस्लिम कर सत्तारूढ़ होती है, उसी के राज में भारत मांस निर्यात में ऊपर चढ़ता गया और अब चंद नोटों के लालच में मीट लॉबी के चंगुल में हैं। जिंदा पशुओं को मरने के लिये निर्यात का प्रस्ताव ला रही है। किसी का विरोध नहीं, सबकी चुप्पी, सभी इस पाप के भागीदार बनेंगे, चाहे प्रत्यक्ष रूप में या अप्रत्यक्ष रुप में।
पशु उत्पाद भारत के सामाजिक – आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गौमाता दूध ही नहीं, अनेक प्रकार से उपयोगी है।

बैल किसानों के लिये खेती का महत्वपूर्ण अंग है और वही शंकर जी नंदी के रूप में पूजा भी जाता है। और आज मोदी जी की सरकार 1898 के अधिनियम में परिवर्तन कर, इन्हें सामान मानकर, जिंदा बेचने की जुगत में है, किसलिये? उनको मारकर, काटकर, पकाने खाने के लिये। जहां भारत के वैज्ञानिक ने पेड़ों को भी जीव के रूप में पहचान कर नोबेल पुरस्कार जीता, वहां आज की सरकार पशुओं को, जीवों को, ‘सामान’ मानने में तुली है, विधेयक में परिवर्तन कर।

चलिये, पहले इस अधिनियम की चर्चा करते हैं, जो अंग्रेज सरकार ने 12 अगस्त 1898 को गुलाम भारत के लिये बनाया, तब भी वह इतनी निरंकुश नहीं हुई। उसने भारत में ऊंट, भेड़, घोड़े आदि के आयात के लिये कानून बनाया, नस्ल सुधारने के लिये, जो निश्चय ही अच्छी बात था। आज सरकार उसका उलट कर रही है। इस अधिनियम में आयात की ब ात है और वो निर्यात की बात कर रही है।

और फिर 05 जुलाई 2001 को तत्कालीन केन्द्र ने लाइव स्टॉक को परिभाषित किया, हर प्रकार के मीट और मीट उत्पाद के लिये। पर अब हद हो गई। निर्यात करना चाहते हैं बेजुबान पशुओं को। और यह हमारे संविधान का स्पष्ट उल्लंघन है।

अनुच्छेद 51ए में भारतीय नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है, उसमें स्पष्ट उल्लेख है वन्य जीवों की रक्षा करें, संवर्धन करें, प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखें। वहीं प्रस्तावित पशुधन आयात और निर्यात विधेयक 2023 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए (जी) के विपरीत है।

यही नहीं 07 मई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम नागराजा आदि में कई स्पष्ट टिप्पणियां व निर्देश दिये हैं। जानवरों को दर्द, चोट, बीमारी, भूख, भय, संकट से मुक्ति का अधिकार है। अदालत ने जजमेंट में सरकार और संसद को निर्देश दिया है कि जानवरों की पीड़ा रोक, सुरक्षा करें, उनकी देखभाल करें, उनकी भलाई करें।
क्या संघ परिवार भी यही चाहता है कि मरने, कटने के लिये जिंदा पशुओं का निर्याथ किया जाए?

एक तरफ केन्द्र और भाजपा शासित राज्य सरकारें गौमाता के लिये गौशालायें खुलवाती है, वहीं उनके बछड़े-वछियों को जिंदा निर्यात कर, उनको मुस्लिम देशों में मरने के लिये निर्यात करने की सोच, क्या संकेत करती है। अगर बछिया चली जायेगी, तो कल होने वाली गौमाता ही लुप्त। एक तरफ माता कहते हैं और उसी के वंश के नाश की यह गलत सोच!!
एक तरफ हमारा देश किसानों का देश है, उनके खेत बैल जोतता है और उसी को जिंदा निर्यात कर, मारने की तैयारी। कौन जोतेगा खेत? सरकार कहती है हम किसान के हित में है, और कानून ऐसा कि उनके बैलों का ही खात्मा। इंडोनेशिया में भी ऐसा हुआ, वहां आज खेत जोतने के लिये बैल नहीं मिलते।

॰ जहां गाय-भैंस का दूध पीकर हमारा हर कान्हा बड़ा होता है, उन्हीं की हत्या के लिये यह घिनौना विधेयक? ऐसा ही अदा होता है मां के दूध का कर्ज? आचार्य श्री विद्यासागरजी को बचपन में गाय के दूध ने भयंकर बीमारी से ठीक किया, आज तक वो 125 से ज्यादा गौशालाओं में एक लाख से ज्यादा पशुधन को बचा रहे हैं। ऐसे उतारा जाता है दूध का कर्ज!

॰ एक तरफ भगवान शिव के नंदी की मूरत के लिये अदलात में लड़कर अपने को हिंदूत्व का मसीहा दर्शाती है सरकार, दूसरी तरफ जिंदा नंदी के निर्यात की गलत सोच। क्या यह नहीं दर्शाती कि केवल वोटों के लिये, नोटों के लिये, किसी भी हद तक नीचे गिरा जा सकता है।

॰ समरंभ, समारंभ, आरंभ, कृत, कारित, अनुमोदना, का पाठ जैन शास्त्रों में यूं ही नहीं लिखा, उसको समझना जरूरी है। ऐसे बुरे कार्य को करना तो क्या, सोचना भी पाप है और विरोध न करने पर, हर कोई इस पाप का भागीदार बनेगा।

॰ 2014 में मोदी जी ने चुनावों से पूर्व कहा था कि हमारा पशुधन विदेशियों के स्वाद के लिये काट-काट कर क्यों भेजा जा रहा है? मेरा कलेजा काटा जा रहा है और आज 10 साल बाद उन्हीं की सत्ता में मीट के साथ, अब जिंदा पशुओं के निर्यात की गलत सोच।
सरकार को ऐसे बुरे विधेयक को तैयार करने की इतनी ज्लदी क्यों है? केवल सुझावों के लिये 10 दिन का वक्त, जबकि अमूमन 60 दिन दिये जाते हैं। इस विधेयक के पीछे क्या कोई और भी छिपा एजेंडा है? एक तरफ बढ़ता मांसाहार, दूसरी तरफ यह जिंदा पशुधन निर्यात।

आप में से अधिकांश नहीं जानते होंगे कि पड़ोसी, मांसाहारी कहे जाने वाले पाकिस्तान देश में भी, जिंदा पशुओं के निर्यात पर पूरी तरह पाबंदी है और वही, शाकाहारी हमारी सरकार इस ओर कदम बढ़ा रही है।
इस संबंध में सरकार का क्या निर्णय है अब, इस बारे में चैनल महालक्ष्मी कल 20 जून को पुनः मत्स्य पालन पशुपालन विभाग के संयुक्त सचिव से बात करने का प्रयास करेगा। आज भी किया था और 3 दिन पहले से भी, लेकिन हर समय यही जवाब मिलता रहा कि वह अभी व्यस्त है।

उठाइये मिलकर आवाज, सरकार भी ऐसी गलत सोच से बाहर आये, पूरा अहिंसक, शाकाहारी भारत एक हो जाए।