16 वे तीर्थंकर, 5 वे चक्रवर्ती और 12 वे कामदेव पद के धारी देवाधिदेव शांतिनाथ का ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी, 9 जून, को जन्म, तप और मोक्ष कल्याणकों का दिन

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9 जून दिन बुधवार तीर्थंकर शांतिनाथ जी का है जन्म कल्याणक , हस्तिनापुर में हुआ था | आज के ही दिन प्रातःकाल, भरणी नक्षत्र में मातारानी ऐरावती ने तीर्थंकर को जन्म दिया था |

9 जून दिन बुधवार तीर्थंकर शांतिनाथ जी का है तप कल्याणक , हस्तिनापुर में हुआ था | आज के ही दिन दर्पण में अपने दो प्रतिबिम्ब दिखाई दिए , वैराग्य हुआ , संध्या के समय भरणी नक्षत्र में 1000 राजाओं के साथ जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की |

9 जून दिन बुधवार
तीर्थंकर शांतिनाथजी का है मोक्ष कल्याणक , शिखरजी में कुन्दप्रभ कूट ( टोंक न.-19 ) पर हुआ था | आज के ही दिन संध्या के समय भरणी नक्षत्र में 9000 मुनिराजों के साथ सिद्ध पद को प्राप्त किया था | इस कूट से 9 कोड़ा कोड़ी 9 लाख 9 हजार 999 मुनि मोक्ष गये |

जन्म कल्याणक का अर्घ्य

जन्म लिया प्रभु आप ज्येष्ठ वदी चौदस में।
सुरगिरि पर अभिषेक किया सभी सुरपति ने।।
शांतिनाथ यह नाम रखा शान्तिकर जग में।
हम नावे निज माथ जिनवर चरणकमल में।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्री शांतिनाथजिनजन्म- कल्याणकाय नमः अर्घ्यं
दीक्षा कल्याणक का अर्घ्य

दीक्षा ली प्रभु आप ज्येष्ठ वदी चौदस के।
लौकांतिक सुर आय बहु स्तवन उचरते।।
इंद्र सपरिकर आय तप कल्याणक करते।
हम पूजें नत माथ सब दुख संकट हरते।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनदीक्षा-कल्याणकाय नमः अर्घ्यं

मोक्ष कल्याणक का अर्घ्

प्राप्त किया निर्वाण ज्येष्ठ वदी चौदस में।
आत्यंतिक सुखशांति प्राप्त किया उस क्षण में।।
महामहोत्सव इंद्र करते बहुवैभव से।
हम पूजें जिनपाद छूटें सभी भवदुःख से।।
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाचतुर्दश्यां श्रीशांतिनाथजिनमोक्ष-कल्याणकाय नमः अर्घ्यं

अनमोल रत्नत्रय निधीकी मैं करूँ अब याचना।
जिन अर्घ्य लेकर पूजते ही पूर्ण होगी कामना।।
श्री शांतिनाथ जिनेश शाश्वत शांति के दाता तुम्हीं।
प्रभु शांति ऐसी दीजिये हो फिर कभी यांचा नहीं।।
ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये नमः अर्घ्यं.••••”

तीर्थंकर श्रीशांतिनाथजी का परिचय

जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातः काल शुभ भरणी नक्षत्रों के योग में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वसेन था, जो हस्तिनापुर के राजा थे। उनकी माता का नाम महारानी ऐरादेवी था।

बचपन में ही शिशु शांतिनाथ कामदेव के समान सुंदर थे। कहा जाता है उनका मनोहारी रूप देखने के लिए देवराज इन्द्र-इन्द्राणी सहित उपस्थित हुए थे। शांतिनाथ के शरीरकी आभा स्वर्ण के समान दिखाई देती थी। उनके शरीरपर सूर्य, चन्द्र, ध्वजा, शंख, चक्र और तोरण के शुभ मंगल चिह्न अंकित थे। जन्म से ही उनकी जिह्वा पर मां सरस्वती देवी विराजमान थीं।

जब शांतिनाथ युवावस्‍था में पहुंचे तो राजा विश्वसेन ने उनका विवाह कराया एवं राजा विश्वसेन ने मुनि-दीक्षा ले ली। राजा बने शांतिनाथ के शरीर पर जन्म से ही शुभ चिह्न थे।उनके प्रताप से वे शीघ्र ही चक्रवर्ती राजा बन गए।उनकी 96 हजार रानियां थीं। उनके पास 18 करोड़ घोड़े,84 लाख हाथी, 360 रसोइए, 84 करोड़ सैनिक, 28 हजार वन,18 हजार मंडलिक राज्य, 360 राजवैद्य, 32 हजार अंगरक्षक देव, 32 चमर ढोलने वाले यक्ष, 32 हजार मुकुटबध्द राजा, तीन करोड़ उत्तम वीर,अनेकों करोड़ विद्याधर,88000 म्लेच्छ राजा, 96 करोड़ ग्राम, 1 करोड़ हंडे, 3 करोड़ गायें, 3 करोड़ 50 लाख बंधु-बांधव, 10 प्रकार के दिव्य भोग, 9 निधियां और 14 रत्न, 3 करोड़ थालियां आदि संपदा थीं। उनके 75 हजार नगर,16000 खेट, 24000 कर्वट, 4000 मटम्ब, 48000 पत्तन आदि अनेकों वैभव थे।

इस अकूत संपदा के मालिक रहे राजा शांतिनाथ ने सैकड़ों वर्षों तक पूरी पृथ्वी पर न्यायपूर्वक शासन किया। एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे।तभी उनकी किशोरावस्था का एक और मुख दर्पण में दिखाई पड़ने लगा, मानो वह उन्हें कुछ संकेत कर रहा था।

उस संकेत देख वे समझ गए कि वे पहले किशोर थे फिर युवा हुए और अब प्रौढ़। इसी प्रकार सारा जीवन बीत जाएगा। लेकिन उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा पाना है। यही उनके जीवन का उद्देश्य भी है। …और उसी पल उन्होंनेअपने पुत्र नारायण का राज्याभिषेक किया और ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी को भरणी नक्षत्र में बेला का नियम लेकर स्वयं दीक्षा लेकर दिगंबर मुनि का वेष धारण कर लिया। मुनि बनने के बाद लगातार सोलह वर्षों तक विभिन्न वनों में रहकर घोर तप करने के पश्चात अंतत: पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर कहलाएं।

तदंतर उन्होंने घूम-घूमकर लोक-कल्याण किया, उपदेश दिए। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सम्मेदशिखरजी पर भगवान शांतिनाथ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्म के पुराणों के अनुसार उनकी आयु एक लाख वर्ष कही गई हैं।

भगवान शांतिनाथ का अर्घ्य

बसु द्रव्य संवारी तुम ढिग सारी, आनन्द कारी दृग प्यारी।
तुम हो भवतारी, करुणा धारी, यातैं थारी शरणारी।
श्री शान्ति जिनेश, नुत शक्रेशं वृष चक्रेशं, चक्रेशं।
हनि अरि चक्रेशं, हे गुणधेशं, दया मृतेशं, मक्रेशं।

ह्रीं श्री शांतिनाथ जिनेन्द्राय अनर्घपद प्राप्तये अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा।

श्रीशांतिनाथ भगवान के जन्म, तप और मोक्ष कल्याणकों की जय जय जय.
सभी धर्मप्रेमियों को हार्दिक बधाई और मंगल शुभकामनायें।