आचार्य श्री विमल सागर जी सूरी जी के ट्वीट ने पूरे जैन समाज के लिए यह क्या कर दिया? पूरे जैन समाज के दिल को दुखा दिया

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30 मार्च 2023/ चैत्र शुक्ल नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन/
आदरणीय व समाज की एकता के लिए अपने स्पष्ट शब्दों से हकीकत दिखाने वाले, आचार्य श्री विमल सागर जी सूरी जी ऐसा कभी ट्वीट कर सकते हैं, यह सपने में भी नहीं सोचा जा सकता। आखिर जब समाज विघटन के कगार पर खड़ा हो, तब उनके बोल हमेशा एकता के लिए प्रेरित करते हैं । पर आज, गुरुवार , 30 मार्च, 2023 को दोपहर के समय, उन्होंने निम्न ट्वीट कर पूरे जैन समाज को बहुत विस्मय में डाल दिया है, शर्मसार कर दिया है।

” तुम सोचते हो कि नंगा रहने से मोक्ष मिलेगा तो नंगे रहो । तुम्हें कौन रोकता है नंगा होने से। ये बताओ कि तुम नारी जाति के इतने विरोधी क्यों हो? तुम स्त्री को मोक्ष की अधिकारी नहीं मानते। उसका क्या अपराध है। साधु नंगे होते हैं तो साध्वियों को तुमने कपड़े क्यों पहनाये? कुछ गोलमाल है।”

निश्चय ही आचार्य विमल सागर जी सूरी जी इस तरह के अज्ञानता की बात कभी नहीं कह सकते और ना ही बोल सकते हैं। संभवत उनके टि्वटर अकाउंट का दुरुपयोग किया गया होगा या फिर किसी ने जानबूझकर ऐसा ट्वीट करवाया होगा।

संक्षिप्त में थोड़ी सी निम्न जानकारी
चैनल महालक्ष्मी की ओर से देना चाहेंगे। आपको कई बार फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया, पर दुर्भाग्य से आपसे बात नही हो सकी।
आचार्य श्री विमल सागर सूरी जी का ऐसा कहना भी कि नग्नत्व से मोक्ष मिलेगा, यह बात सही नहीं है और स्त्रियों को मोक्ष मिलेगा, यह भी सही नहीं है। दोनों बातें जैन आगम से विरोध रखती हैं। श्री कुंदकुंद आचार्य जी ने स्पष्ट कहा है कि वस्त्रधारी का कभी कल्याण नहीं होता है। वह मुक्ति का पात्र नहीं है। दिगंबर नग्न स्वरूप ही मोक्ष मार्ग है। शेष कुमार्ग ( खोटे मार्ग ) हैं। आपने लिखा है कि तुम स्त्री को मोक्ष की अधिकारी नहीं मानते। उसका क्या अपराध है ।

साध्वियों को तुमने कपड़े क्यों पहनाये?
तो इस पर यही ध्यान दिलाना होगा कि स्त्रियों की मुक्ति , इसलिए नहीं हो सकती कि उनके शरीर की रचना दूसरों को जुगुप्सा (घृणा) पैदा करती है, दोष पैदा करती है, वस्त्रहीन रचना समाज में कभी स्वीकार्य नहीं है, और लोक व्यवहार इससे खत्म होता है । इसलिए नारी के लिए मुक्ति का निषेध सर्वत्र किया गया है। स्त्री हमेशा हीन संहनन में होती है और पुरुष उत्तम संहनन के धारक हो सकते हैं। उत्तम संहनन वाले को ही मुक्ति होती है। श्वेतांबर आगम साहित्य में भी दिगंबर को मुक्ति बताई है और सभी धर्म के ग्रंथ सभी प्रकार के परिग्रह से रहित अवस्था में ही मुक्ति बतलाते हैं।

आपके द्वारा यह कहना एक साधु की भाषा नहीं हो सकती । उसकी गरिमा को ठेस लगाती है । आप दोनों संप्रदाय के ग्रंथों में जैसे मूलाचार , प्रवचनसार , आचारांग आदि अनेक में इसका स्पष्ट उल्लेख भली-भांति जानते होंगे। इस पर चैनल महालक्ष्मी और खुलासा, शुक्रवार, 31 मार्च , रात्रि 8:00 बजे के अपने एपिसोड में करेगा। वर्तमान समय की नजाकत को देखते हुए कभी भी हमें समाज को बांटने की, नीचे गिराने की, अनावश्यक विवाद पैदा करने की बातें , कभी नहीं करनी चाहिए।

आदरणीय आचार्य श्री विमल सागर सूरी जी, मैं आप के प्रवचनो से सदा प्रभावित रहता हूं । आपकी कठोर, पर अंदर पहुंचने वाली शब्दावली, हमें जहां जोड़ भी सकती है , वहां तोड़ भी सकती है। मैं हृदय से आपसे क्षमा चाहता हूं ,मेरे इन शब्दों के लिए । पता नहीं आपके इस ट्वीट ने क्यों मेरे ही नहीं, पूरे जैन समाज के दिल को दुखा दिया। हृदय से मैं आपका हमेशा सम्मान करता हूं, और सदा करता रहूंगा क्योंकि आप उस सामर्थ्य को रखते हैं , जो समाज को हकीकत दिखाता है, और समाज को जोड़ने की बातें भी कहता है, चाहे वह किसी को कड़वी लगे।