पूरे देश को आचार्य श्री ने सब कुछ दिया,अब देश उनको क्या देगा? हम मानव कल्याण के लिये कार्य करें

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23 फरवरी 2024/ माघ शुक्ल चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
आचार्य श्री शांतिसागर जी की आज कई धारायें हैं- आचार्य विद्यासागरजी, आचार्य विद्यानंद जी, आचार्य वर्धमान सागरजी, आचार्य अनेकांत जी- बस इन्हीं शब्दों से शुरुआत करते आचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी ने गुरुवर के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि हमारी 12 बच्चों की टोली थी, जो गर्मी के 2 माह आचार्य श्री के पास रहती थी। हमारें वहां दो काम थे, कमण्डलुओं में पानी भरना और जिन साधु का अंतराय हुआ हो, उनकी वैय्यावृत्ती करना। मुझे वे दीपु कहकर बुलाते थे। जब दीक्षा के लिये जाने से पूर्व मेंहदी लगे हाथों से उनके पास पहुंचा, तो उन्होंने आशीर्वाद दिया – ‘जहां रहो, संयम से रहो, आगे बढ़ो’, बस उसी आशीर्वाद के साथ मैंने दीक्षा ली और कदम बढ़ाये। आचार्य श्री के लिए नौ शाश्वत अंक का संयोग रहा। 18 को 36 गढ़ में समाधि, 36 गुण वाले आचार्य, सभी का योग 9 है।
सम्पूर्णता का प्रतीक सूर्योदय से पहले सूर्यास्त हुआ। शब्द नि:शब्द हैं। अतिश्योक्ति नहीं तो वे वर्तमान के वर्धमान थे। वो कोहिनूर थे, नाम की तरह काम, असीम श्रद्धा, आस्था के केन्द्र, उन्होंने विश्व विजेता नहीं, आत्म विजेता बनाया। लोग उनके भारत रत्न की बात करते हैं, मैं तो उन्हें विश्व रत्न कहता हूं।


दिल्ली दरियागंज के बालाश्रम में 20 फरवरी को प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत एवं श्री भारतवर्षीय अनाथरक्षक जैन सोसायटी के तत्वावधान में दो आचार्यों के ससंघ सान्निध्य में संत शिरामणी आचार्य श्री विद्यासागर जी विनयांजलि सभा में अनेक श्रेष्ठियों ने गुरुवर के प्रति अपने विचार साझा किये, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व ‘आज तक’ के ब्लैक एंड व्हाइट के साथ संतों के विचार भी साझा किये गये।

आचार्य श्री अनेकांत सागर जी ने कहा कि आचार्य श्री ज्ञान-ध्यान की साक्षात प्रतिकृति, चारित्र चर्या के मंदिर, मूलाचार और मूल आराधना को अपने जीवन में आत्मसात किया, साधना के आभा मंडल से वीतरागता का जीवन में उपदेश, जीवन में अंहिसा का श्रद्धान, विचारों में अनेकांतवाद की जीवंत मूरत थे विद्यासागर। चेतन-अचेतन दोनों तरह के तीर्थों का इन्हीं ने जीर्णोद्धार किया, जन प्रिय के साथ गुरु प्रिय संत थे। विद्याधर से विद्यासागर बने, भविष्य में केवलज्ञान के सागर को प्राप्त कर अगत्व: बनें। जिन्हें राजनेता, अभिनेता,धर्मनेता, सभी चाहते थे, तो उनका ऐसा समाधिस्थल बनायें, जहां जाकर सभी को शांति मिले।
लोकेश मुनि जी ने कहा कि आज कोई कहे कि तीर्थंकर कैसे होते हैं? तो हम कह सकते हैं वो शायद विद्यासागर जी जैसे होते हैं। जो-जो नेता विद्यासागर जी के लिये श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहते हैं, वे मांसाहार को रोके, गौहत्या पर विराम लगे, तभी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यह मृत्यु नहीं महोत्सव है।

इमाम उमेर अहमद इलियासी ने कहा कि वो गये नहीं हैं, उनके विचार हमेशा जिंदा रहेंगे। सभी धर्मों का सम्मान करें, धर्म अलग, हबाबत अलग, पूजा-पद्धति अलग, पर इंसानियत और भारतीयता हम सबका पैगाम है। ये संत केवल जैनों के लिये नहीं, सबके लिये दुआ करते हैं, सभी के हैं।

बौद्ध भंते सुमेधो दीपांकर जी ने कहा कि करूणा, अहिंसा के मार्ग को वर्तमान में अग्रणी थे आचार्य विद्यासागर। अब हिंसा के साथ नशे के विरोध की भी मुहिम छेड़नी होगी।

विद्वान डॉ. जय कुमार उपाध्ये जी ने आचार्य श्री के पूरे जीवन पर प्रकाश डालते हुये बखूबी व्यख्यान किया।

पूर्व केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि उनकी पवित्र स्मृति को स्मरण करना भावुकता का क्षण है। उनकी कलमबद्ध रचनाओं पर पीएचडी, शोध हुए। हम मानव कल्याण के लिये कार्य करें, उनको यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

भाजपा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेवा ने कहा कि पूरे विश्व को शांति का संदेश देने वाले, प्यार का, माह-माया से दूर, संस्कार देने वाले, उनकी बातों में से एक का भी अनुपालन करना, उनके प्रति सच्ची विनयांजलि होगी।

23 साल से भाजपा विंग में कार्यरत महेन्द्र पाण्डेय ने कहा कि पहली बार 12 हजार लोगों की उपस्थिति में राष्ट्रीय अधिवेशन में किसी महापुरुष को 15 मिनट तक प्रधानमंत्री सहित सभी गणमान्य की मौजूदगी में श्रद्धांजलि दी गई, उसी से उनकी विशेषता का पता लग जाता है।

तेरापंथ समाज के अध्यक्ष सुखराम सेठिया ने कहा कि अध्यात्म जगत के शिखर पुरुष ने 100 से ज्यादा ग्रंथों का निर्माण किया तथा पूरी मानव जाति पर उपकार किया।

विद्वान प्रो. विजय जैन लखनऊ ने कहा कि सम्पूर्ण भारत की संत परम्परा का गौरव, गौशालाओं से अहिंसा का, प्रतिभास्थली में महिलाओं का मार्ग प्रशस्त किया, हथकरघा से राष्ट्र गौरव बढ़ाया, ‘इंडिया नहीं, भारत बोलो’ से भारतीयता का गौरव बढ़ाया। उनका यही कहना था कि अप्रभावना व दोषों से बचे रहो, प्रभावना होती जायेगी।

पहली बार माइक पकड़ रहे सुधीर जैन ने कहा कि वे केवल नवीं कक्षा तक पढ़े, पर डोगरगढ़ में नासा के एक वैज्ञानिक उनके दर्शन करने आये, तो आचार्य श्री ने आकाश का जो ज्ञान दिया, उसे जानकर वह वैज्ञानिक नतमस्तक हो गया। उन्होंने स्वावलम्बी बनना और कार्य स्वयं करना सिखाया।

पंजाब केसरी से स्वदेश भूषण जी ने कहा कि मल्लपा और श्रीमंत जी ने पूरे परिवार को उत्तम सस्ंकार दिये। आचार्य श्री ने देश को सब कुछ दिया, पर आज क्या उनके जाने के बाद देश उनको कुछ देने को तैयार है? निर्णय करें, उनके लिये कुछ करके दिखाना है।

ऋषभदेव विद्वत परिषद के पं. टीकम चंद जैन ने कहा कि 1967 में आचार्य ज्ञान सागर जी की पहली लाइन – विद्याधर विद्या सीखकर तो उड़ जाओगे, तभी वाहन-सवारी का त्याग कर दिया और रात भर शिक्षा पाठ करके प्रमाणित कर दिया कि वो भगोड़ा नहीं। डॉ. डी.सी जैन ने कहा कि 1988 में आचार्य श्री से शाकाहार प्रोत्साहन के लिये आशीर्वाद लिया।

इस अवसर पर आरएसएस दिल्ली प्रदेश के दयानंद जी व श्रमण कुमार जी, इम्प्रीत बख्शी, सारिका जैन (दिल्ली प्रदेश भाजपा), मनोज जैन मनोनीत पार्षद, विजेन्द्र धामा (जिलाध्यक्ष मयूर विहार), भावना जैन (मयूर विहार भाजपा) के साथ शरदराज कासलीवाल, पवन गोधा, प्रमोद जैन, अनिता जैन और वाल्मिकी समाज के देशपाल जी ने भी विनयांजिल अर्पित की।

इस अवसर पर पवन राणा, सारिका जैन, मनोज जैन दरियागंज, पंकज जैन, भावना जैन, आदि अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। दिल्ली जैन समाज अध्यक्ष चक्रेश जैन ने सभी का धन्यवाद दिया वहीं पुनीत जैन सहित अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत समिति की पूरी कमेटी इस अवसर पर मौजूद थी।