आचार्य श्री की देह से विदेह की यात्रा, 21वी सदी का सूर्यास्त 2024 में ही, आचार्य पद की विधिवत जानकारी कल

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18 फरवरी 2024/ माघ शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
इतना कठिन जीवन के बाद भी मुख मुद्रा स्वर्ग के देव सी…. जन जन युग दृष्टा ब्रहमांड के देवता संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज ने आज दिनांक 18 फरवरी रविवार तड़के ब्रह्म मुहूर्त में 2.30 बजे संल्लेखना पूर्वक समाधि (देह त्याग दी) ले ली है। छत्तीसगढ के डोंगरगढ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर उन्होंने अंतिम सांस ली है। उनका अंतिम संस्कार आज 18 फरवरी, रविवार को दोपहर 1 बजे किया जाएगा।

हम सबके प्राण दाता राष्ट्रहित चिंतक परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना बुद्धिपूर्वक धारण करली थी। पूर्ण जागृतावस्था में उन्होंने आचार्य पद का त्याग करते हुए 3 दिन के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था एवं प्रत्याख्यान व प्रायश्चित देना बंद कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था। 6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेजकर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली और उसी दिन आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने आचार्य पद के योग्य प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को योग्य समझा और तभी उन्हें आचार्य पद दिया जावे ऐसी घोषणा कर दी थी जिसकी विधिवत जानकारी कल दी जाएगी।

श्रमण संस्कृति की गौरवशाली परंपरा में परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अपनी आगमोक्त चर्या और आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा निरंतर आत्मसाधना व प्रभावना में संलग्न हैं। आप श्रमण परंपरा के विलक्षण और तपस्वी संत हैं। आपने समाज और संस्कृति को भी एक नई दिशा दिखाई
आपका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी।

विद्यासागर जी को ३० जून १९६८ में अजमेर में २२ वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को २२ नवम्बर १९७२ में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी घर के लोग संन्यास ले चुके है।उनके भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये

आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।
आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है।मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।

इस खबर से देशभर में शोक की लहर है। आचार्यश्री पिछले कुछ दिन से अस्वस्थ थे। पिछले दो दिन से उन्होंने अन्न जल का पूरी तरह त्याग कर दिया था। आचार्यश्री अंतिम सांस तक चैतन्य अवस्था में रहे और मंत्रोच्चार करते हुए उन्होंने देह का त्याग किया है। समाधि के समय उनके पास पूज्य मुनिश्री योगसागर जी महाराज, श्री समतासागर जी महाराज, श्री प्रसादसागर जी महाराज संघ सहित उपस्थित थे।

गुरुवारश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे निकाला जाएगा,एवम् चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया जावेगा।सल्लेखना के अंतिम समय श्रावकश्रेष्ठी अशोक जी पाटनी आर के मार्बल किशनगढ राजा भाई सूरत प्रभात जी मुम्बई अतुल शाह पुणे विनोद बडजात्या रायपुर किशोर जी डोंगरगढ भी उपस्थित रहे

देश भर के जैन समाज और आचार्यश्री के भक्तों ने उनके सम्मान में आज एक दिन अपने प्रतिष्ठान बंद रखने का फैसला किया है। रात को सूचना मिलते ही आचार्यश्री के हजारों शिष्य डोंगरगढ के लिए रवाना हो गए हैं।