महाराष्ट्र का जैन कासार समाज : हमारे बिछडे हुये भाई,जैन धर्म की मुख्य धारा में लाना एक बेहद जरूरी

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जनगणना के अनुसार महाराष्ट्र में जैन धर्मानुयायीयों की संख्या अन्य किसी भी राज्य से जादा है. इस राज्य में अन्य राज्यों से, विशेष कर गुजरात और राजस्थान से आ कर बसे हुये जैनियों के बारे में तो सब जानते ही हैं, लेकिन यहां इसी प्रदेश के मूलनिवासी जैनियों की संख्या भी बहुत बडी है.

महाराष्ट्र का मूलनिवासी जैन समाज मराठी भाषी है और पूरे महाराष्ट्र में फैला हुआ है. यह मूलनिवासी जैन समाज दिगंबर संप्रदाय को मानने वाला है. इनमें कई अलग-अलग जातियां है. प्रमुख जातियां हैं: चतुर्थ, पंचम, सैतवाल और कासार.

इस लेख में मैं कासार समाज के बारे में लिख रहा हूं.

महाराष्ट्र का कासार समाज तीन धडो में विभाजित है. जैन कासार, सोमवंशीय क्षत्रिय कासार और त्वष्टा कासार. इन में सेजैन कासार जैन धर्मानुयायी हैं जब कि सोमवंशीय क्षत्रिय कासार हिंदू धर्म का पालन करते हैं, शाकाहारी हैं और पहले यह जैन धर्मीय थे. त्वष्टा कासार पूर्ण रूप से हिंदू धर्मीय और मांसाहारी हैं. उनका परंपरागत व्यवसाय तांबे के बर्तन बनाना है. त्वष्टा कासार समाज के कुलनाम (surnames) जैन और सो.क्ष. कासार समाज के कुलनामों से अलग प्रकार के होते हैं.

जैन कासार समाज
जैन कासार समाज महाराष्ट्र के जैन समाज का एक महत्व पूर्ण हिस्सा है. यह समाज पूरे महाराष्ट्र में दिखाई देता है, फिर भी दक्षिण महाराष्ट्र के कोल्हापूर, सांगली और सोलापूर तथा कोंकण के रत्नागिरी और सिंधूदुर्ग इन जिलों में बडी संख्या बडी है. इन जिलों के अलावा मुंबई और पुणे जैसे बडे शहरों में, मराठवाडा के कई जिलों में इनकी संख्या अच्छी-खासी है. महाराष्ट्र के बाहर उत्तरी कर्नाटक के बेलगाम, बीजापुर और गुलबर्गा इन जिलों में भी यह समाज पाया जाता है. कर्नाटक में इस समाज को बोगार नाम से जाना जाता है. महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक के कुछ गाव ऐसे हैं जहां जैन कासार समाज के परीवारों की संख्या 100 से 500 तक भी होती है.

यहां मैं इस बात का भी उल्लेख करना चाहूंगा कि गुजरात, राजस्थान इन प्रदेशों में भी कसेरा, कंछारा नाम से जाने जानेवाले लोग हैं जो जैन धर्मानुयायी हैं. कासार, कसेरा, कंछारा मूल रूप से एक ही नाम के अलग अलग रूप हैं.

पारंपारिक रूप से यह पद्मावती माता को ज्यादा मानते हैं, जो कि भगवान पार्श्वनाथ की शासन देवता है. जैन कासार समाज के अपने जैन मंदिर भी होते हैं. इस समाज से कुछ त्यागी-मुनि भी हो गये हैं.

जैन समाज की 84 जातियों की अलग अलग सूचियों में कासार जाति का भी उल्लेख है.

इस समाज का परंपरागत व्यवसाय चुडियां/ कंगन और बर्तन बेचना है. लेकिन आधुनिक काल में जादातर लोग अन्य कई प्रकार के व्यवसाय करते हैं. साक्षरता का प्रमाण भी अच्छा है. इस समाज को ओ.बी.सी. दर्जा प्राप्त है, जिसके कारण शिक्षा, सरकारी नौकरियां और राजनिती में इन्हे कई लाभ मिलते हैं, साथ ही जैन धर्मावलंबी होने के कारण इन्हे अल्पसंख्याकों को दिये जाने वाले लाभ भी मिलते हैं.

इस समाज की ‘जैन कासार समाचार’ इस नाम की एक मराठी पत्रिका निकलती है. जैन कासार समाज संस्था अखिल महाराष्ट्र स्तर पर सामाजिक संगठन और समाजोपयोगी काम कर रही है. दक्षिण महाराष्ट्र और कोंकण का जैन कासार समाज दक्षिण भारत जैन सभा से जुडा हुआ है. इसके अलावा महाराष्ट्र भर के कई जैन कासार युवक भारतीय जैन संगठन से जुडे हुए है.

यह समाज जैन धर्म का अच्छा-खासा पालन करता है, संगठित भी हो रहा है. शहरों में इस समाज के वैवाहिक रिश्ते पंचम, चतुर्थ, सैतवाल समाज से कुछ पैमाने पर हो रहें हैं.

कन्नड साहित्य के आदिकवि पंप, रन्न और पोन्न, यह तीनों जैन धर्म के अनुयायी थे और उनमें से कवि रन्न जैन धर्मानुयायी था. (दसवी सदी). महान फिल्म डायरेक्टर, निर्माता और अभिनेता वी. शांताराम जैन कासार समाज से थे. इनको आचार्य विद्यानंद द्वारा ‘जैन समाज रत्न’ पुरस्कार दिया गया था.

सो. क्ष. कासार समाज
जैसे कि मैं ने उपर लिखा है, सोमवंशी क्षत्रिय कासार लोग पहले जैन धर्मीय थे. कुछ राजकीय और सामाजिक कारणों से और मुख्य जैन धारा से अलग पडने के कारण हिंदू धर्म को अपनाने लगे. इनका परंपरागत व्यवसाय चुडियां/ कंगन बेचना है, कुछ लोग बर्तन बेचते है.

यह लोग जादातर पूर्व महाराष्ट्र (विदर्भ) और उत्तर महाराष्ट्र (धुलिया, जलगांव, नासिक आदि जिले), मराठवाडा में पाया जाता है. यह शाकाहारी समाज है और इनके विवाह संबंध जैन कासारों के साथ होते हैं, लेकिन किसी दूसरी हिंदू जाती के साथ नहीं होते. इनके कुलनाम भी (surnames) जादातर जैन कासार समाज जैसे ही हैं. इस समाज के लोग कालिका देवी को मानते है, जो एक जैन शासन देवता है. यह कालिका देवी हिंदू कालिका देवी से अलग है. इनके अपने कालिका देवी के मंदिर होते हैं, और उनमें से कुछ मंदिरों में भगवान चंद्रप्रभू की प्रतिमा होती है.

भट्टारक देवेंद्र कीर्ती द्वारा लिखित कालिका पुराण इस सदियों पुराने ग्रंथ में, जो आचार्य जिनसेन के महापुराण पर आधारीत है, सोम वंशी क्षत्रिय कासार समाज को भगवान बाहुबली का वंशज बताया गया है. यह समाज जैन- क्षत्रिय था, जो बाद में वैश्य बन गया.

यह समाज जैन कासार समाज से तो संबध रखता है, लेकिन अन्य जैनियों से यह लोग जादा घुल-मिल नहीं जाते.

इस समाज को जैन धर्म की मुख्य धारा में लाना एक बेहद जरूरी बात है. क्यों कि यह लोग हमारे बिछडे हुये भाई हैं. दो-तीन पिढियों पहले इस समाज में शांतिनाथ, नेमिनाथ जैसे नाम बड़े पैमाने पर दिखाई देते थे. जैन समाज और त्यागी-मुनियों के संपर्क में न रहने के कारण यह लोग धीरे धीरे जैन धर्म से दूर चले गये. फिर भी शाकाहारी बने रहें. उन्होने जैन कासार समाज से संबंध नहीं तोडा. कुछ जैन संस्कार होने के बावजूद यह लोग अपने आप को जैन नहीं मानते हैं. इनको मुख्य धारा में लाने से उस समाज का धर्म मार्ग प्रशस्थ तो हो ही जायेगा, साथ ही पूरे जैन समाज की शक्ति भी बढेगी. याद रहें कि जैन कासार और सो. क्ष. कासार की कुल मिलाकर संख्या महाराष्ट्र में 10 लाख के आसपास होगी.

कासार समाज को जैन समाज की मुख्य धारा में लाने का काम जैन समाज के साथ साथ त्यागियों और मुनियों को भी करना चाहिये.
– चित्तरंजन चव्हाण