पारस प्रभु को केवल ज्ञान की प्राप्ति से पहले के वह 7 दिन रात, जब हर के होश उड़ गए, पर तप में लीन महामुनिराज अंदर की यात्रा में मग्न रहे

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10 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण तृतीया/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
श्री पार्श्वनाथ को महामुनिराज के रूप में दीक्षा लिए चार माह हो गए। तब उन्होंने जिस वन में दीक्षा ली, उसी वन में जाकर देवदारू वृक्ष के नीचे विराजमान हो गए। वह 7 दिन का योग लेकर ध्यान मग्न हो गए। तभी संवर देव अपने विमान द्वारा आकाश मार्ग से जा रहा था । अकस्मात उसका विमान रुक गया। देव ने अपने विभंगा अवधी ज्ञान से देखा, तो उसे अपने पूर्व भव का स्मरण हो गया, यानी उसे मरुभूति भाई के समय अपने कमठ तक से 10 भव से चल रहा बैर, अब उसके दिमाग में चिर अंकित हो गया था। वह क्रोध में फुंकार लेने लगा। उसने भीषण गर्जन तर्जन करके प्रलंयकर वर्षा करना प्रारंभ कर दिया। फिर उसने प्रचंड गर्जन करता हुआ पवन प्रवाहित किया।

पवन इतना प्रबल वेग से बहने लगा, जिसमें वृक्ष , नगर, पर्वत तक उड़ गए। तब इतने पर भी श्री पारसनाथ ध्यान से विचलित नहीं हुए। तब वह अधिक क्रोधित होकर नाना प्रकार के भयंकर शस्त्र अस्त्र चलाने लगा। वह शस्त्र तप के प्रभाव से तीर्थंकर के शरीर पर पुष्प बनकर गिरते थे । (कुछ जगह ऐसा भी लिखा है कि वह उनके शरीर को छू भी नहीं सकते थे)। तब घातक शस्त्र भी निष्फल हो गए । तब संवर ने माया से अप्सराओं का समूह उत्पन्न किया । कोई गीत द्वारा रस संचार करने लगी ।कोई नृत्य द्वारा वातावरण में मादकता उत्पन्न करने लगी। अन्य अप्सराएं नाना प्रकार के हावभाव और चेष्टाएं करने लगी । किंतु आत्म ध्यानी वीतराग प्रभु अंतर विहार में मग्न थे। उन्हें बाहर का पता ही नहीं था। किंतु देव भी हार मानने वाला नहीं था । उसने भयानक रौद्र मुखी हिंसक पशुओं द्वारा उपसर्ग किया। कभी भयंकर भूत प्रेतों की सेना द्वारा उत्पात किया ।

कभी उसने भीषण उपल वर्षा की ।उसने पार्श्वनाथ महामुनिराज पर अचिंत्य, अक्लप्य उपद्रव की सारी शक्ति लगा दी , उन्हें पीड़ा देकर ध्यान से विचलित करने में । परंतु वह धीर वीर महायोगी अविचल रहा । वह तो बाहर से एकदम निर्लिप्त , शरीर से निर्मल होकर आत्म रस में विहार कर रहे थे । इस प्रकार उस दुष्ट संवर देव ने 7 दिन तक पारसनाथ महामुनिराज पर घोर उपसर्ग किये। यहां तक कि उसने छोटे-मोटे पर्वत तक लाकर उनके समीप गिराए । अवधिज्ञान से यह उपसर्ग जानकर नागेंद्र धरणेंद्र अपने इंद्राणी के साथ वहां आया। फणा रूप से सुशोभित धर्मेंद्र ने भगवान को चारों ओर से घेर कर अपने फन को ऊपर उठा लिया । पद्मावती देवी भगवान के ऊपर वजरमय छत्र तान कर खड़ी हो गई ।

इसका सजीव विवरण आचार्य पदम कीर्ति जी ने पासनाह चरिउ में किया है, वैसे यह ग्रंथ अब उपलब्ध नहीं होता। पर यह बहुत रोचक रूप से कहा गया है। नागराज के पास आकाश से जैसे जल गिरता, वैसे वैसे कमल रूप में वह बढ़ता जाता। उसने नागराज से कहा तुम मुझसे कलह मत करो। पर वह नहीं माना, तो उसने उस पर भीषण वज्र फेंका । नागराज ने उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए । भाला फेंका, परशू फेंका, पर वह भी उस तक नहीं पहुंचे । नागराज तनिक भी विचलित नहीं हुआ। असुर देव के पास जो भी भीषण शस्त्र थे उसने सब फेंके।

पद्मावती देवी धवल छत्र धारण किए अविचल खड़ी रही । कमठ जितने भयंकर शस्त्र छोड़ता, वह जल रूप परिवर्तित हो जाते या नभ में चक्कर लगाते या उनके सौ सौ टुकड़े हो जाते। तभी शुक्ल ध्यान में लीन रहने वाले श्री पार्श्वनाथ महामुनिराज को केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई और उसी समय संबर देव के मन में, भय के साथ महान चिंता उत्पन्न हो गई। सभी सुरेश्वरों के आसन कंपायमान हो गए। कल्पवासी देवों के ग्रहों में घंटे बजने लगे। इंद्र को अवधि ज्ञान से पता चल गया कि कमथ रूपी संबर उपसर्ग कर रहा है। तब उन्होंने क्रोध युक्त होकर महायुध वज्र को आकाश में घुमा कर तथा पृथ्वी पर पटक कर छोड़ा।

अब असुर देव का साहस छूट गया। वह तीनों लोको में भागता फिरा। वह नभ में भागने लगा, समुद्र में घुस गया, पर वह जहां भी गया, वहीं पर वज्र जा पहुंचा। तब कहीं जगह न पाकर, वह जिनेंद्र की शरण में आया। उनके चरणों में बैठ गया । उन्हें नतमस्तक हो प्रणाम किया । बस वही क्षण वह महासुर भयमुक्त हो गया। वज्र भी कृतार्थ हो वापस नभ में चला गया और सुरेंद्र भगवान के समीप आ गया। यह था वह क्षण, जब पारसनाथ भगवान जी को केवल ज्ञान की प्राप्ति, तप के 4 माह बाद हुई।

11 मार्च दिन शनिवार तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी का है ज्ञान कल्याणक , अहिक्षेत्र ( रामनगर जिला बरेली ) में हुआ था | आज के ही दिन बैरी कमठ का उपसर्ग दूर हो गया , प्रातःकाल विशाखा नक्षत्र में dhav वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई | कई लोगों का मानना है कि तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी का ज्ञान कल्याणक बिजौलिया पार्श्वनाथ ( राजस्थान ) में हुआ , श्वेताम्बर पंथ ये कल्याणक वाराणसी में मानता है |