पहचानिए कौन? जैन हो या अजैन ? श्रेष्ठ संतों के प्रति बेबुनियाद अपशब्द कहने वाला , कभी जैन नहीं कहलाता

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थोड़ा बदलकर कहते हैं –

हमें तो  अपने ही लूट  रहे, गेरों में कहां दम है ।

जैनों की किश्ती वहां डूब रही, जहां पानी कम है ।।

आप मंदिर जाए या ना जाए , पूजा करें या ना करें,  तीर्थंकर आपको कुछ दे या ना दे , साधुओं को आहार दें या न दें, उनके प्रवचन सुने या ना सुने,

जिन्हें पूरा विश्व तप – त्याग – ब्रह्मचर्य – अपरिग्रह – अहिंसा में वर्तमान का श्रेष्ठ संत मानता हो, तो क्या उसके लिए ऐसी कोई पोस्ट स्वीकार करेंगे ?

और यह जान लीजिए, यह पोस्ट किसी अजैन, अज्ञानी के द्वारा नहीं लिखी गई है। यह लिखी गई है, जैन श्रमण में ही पीएचडी करने के बाद, जो एक दर्शन शास्त्री कहलाते हैं , राजस्थान यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल भी लिया है, साधु की श्रेष्ठता पर कॉमिक्स भी लिखी हैं। 80 शोध लेख सेमिनारों में पड़े हैं ।

और भी कई दावों से , जो अपनी पीठ खुद ही ठोकते रहे हैं। अब 2 वर्षों से तो आग उगल रहे हैं, कुछ ऐसी ही पोस्टों से।

आप अगर जैन है, छोड़िए अगर जैन भी नहीं है , तो श्रेष्ठ संत की चर्या देखकर, अहिंसा को मानने वाले हैं , किसी धर्म पर विश्वास करते हैं , तो क्या इस तरह की, एक ऐसे कथित ज्ञानी के द्वारा, लगाई जा रही आग को , स्वीकार करेंगे ? अगर हां, तो लिखिए, डॉ योगेश के पक्ष में, पर पहले, अपने नाम के पीछे लिखे ‘जैन’ शब्द में ‘अ’ जोड़कर नाम के पीछे ‘अ जैन ‘ लिखकर उसके पीछे खड़े हो जाइए, कम से कम जैन तो बदनाम नहीं होगा। अदालत तो यहां लगती है साहब, अगले जन्म का हिसाब कोई दूसरा नहीं, अपने कर्म  ही करते हैं , और वहां के न्याय में लाठी नहीं बजती, आवाज नहीं उठानी पड़ती, क्षमा के द्वार भी इसी अदालत के रास्ते में पड़ता है। कुछ अपने को यह कहते हुए भी, ‘अधर्म ‘की नीचता में आकंठ तक डूबे हुए हैं ।

अरे, आपके पैर भोपाल तक 3 जनवरी तक पहुंचने में असमर्थ हैं, तो जैन धर्म ‘कृत ‘के साथ ‘कारित’ और ‘ अनुमोदना ‘ भी बताता है । अगर एक अ जैन होकर भी , आपके साथ खड़ा है तो राजनीति लगती है, और एक जैन होकर  भी आग उगल रहा है, तो विनाश की बू  नहीं आती। सच है, सही बात पर भी एक ना होना ही ,हमारी संस्कृति को कमजोर करता है , जब घर में चोर हो,तो सुरक्षा कौन करेगा? चैनल महालक्ष्मी ने भी यह कलम उठाने से पहले, डॉक्टर योगेश से 1 घंटे चर्चा की थी। पहले उनके सारे तर्क सुने, जो तर्क नहीं, कुतार्को में समाप्त हुए।  फिर उन्हें समझाने का बहुत प्रयास भी किया। ढाई अक्षर का ‘  क्षमा ‘, जिस के कसीदे वह भी पढ़ते हैं, पर उसे अमल में लाकर, अपनी अकड़ को कम नहीं करना चाहते। कई बार दोहराया गया कि गलतियां न करें,  पर जब मर्यादा सीमाएं पार होने लगी, तो श्री कृष्ण जी भी नहीं चुप बैठे थे और जैनो का तो चल – अचल तीर्थों की सुरक्षा करना परम कर्तव्य है । ऐसी पोस्ट, अगर आपको सही लगती हैं, तो खड़े रहिए डॉक्टर योगेश के साथ, वरना थोड़ा भी जैन के कहलाने का जमीर बचा है, तो उसके विरोध में आवाज तो उठा ही सकते हैं।

 जय जिनेंद्र , जय भगवंत, जय संत