जैसा कार्य आप करते हैं, उसके अनुरूप ही कुत्ता, हाथी, घोडा, घूस आदि बनना पड़ता है, इससे बचने का उपाय है, क्या – आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

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29 जुलाई 2023/ श्रावण अधिमास शुक्ल पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ डोंगरगढ़/ सिंघई निशांत जैन
संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि धार्मिक अनुष्ठान से पुण्य बंध होता है | उस व्यक्ति को देखते हुए कई लोग उसमे जुड़ जाते है जैसा भाव परिणाम होता है वैसा ही फल प्राप्त होता है | जो १६ स्वर्ग में जाते है वे सब सम्यग्दृष्टि हो ऐसा नहीं है मिथ्यादृष्टि भी जा सकता है क्योंकि वे कुछ ऐसी क्रियाये करते है जिससे वे सम्यग्दृष्टि न होते हुए भी उनको इसका लाभ मिलता है |

स्वर्ग में एक इंद्र ऐसा भी होता है जिसका किसी पर कोई अधिकार नहीं होता है और वह किसी पर अपना अनुशासन नहीं चलाता है | वह स्वयं ही इंद्र है, स्वयं ही राजा है और स्वयं ही प्रजा है | ऐसे इंद्र को अह्मिन्द्र कहते हैं | यदि आपको भी ऐसे ही रहने को मिल जाये तो आपको कैसा लगेगा बताओ ? अच्छा लगेगा ही क्योंकि ना कोई ऊपर ना कोई निचे रहेगा | लेकिन कुछ लोगो को पाठ सिखाने के लिये अधिकार दिया जाता है या किसी के अधीनस्त रखा जाता है | जैसा कार्य धरती पर करते हैं उसके अनुरूप ही किसी को कुत्ता, किसी को हाथी, किसी को घोडा, किसी को घूस आदि बनना पड़ता है | इससे बचने का उपाय यह है कि आपको अपने भाव परिणाम अच्छे रखना होगा |

जो व्यक्ति यहाँ रहते हुए भी मुनि बनने के बाद ही यहाँ से वहाँ जायेगा | इसके उपरांत दूसरा मिथ्यादृष्टि होते हुए गया क्योंकि लेश्या शुक्ल होने के कारण मुनि बन करके घोर तपस्या करने से यह परिणाम उसको मिला है | जो बारह भावना का चिंतन कर रहे हैं | भक्तामर जी का पाठ कर रहे हैं | शास्त्र चर्चा आदि करेगा नही लेकिन जो शास्त्रों का आलंबन कर मंथन कर रहा है उसकी ध्वनि को सुनकर के आस पास वाले के ऊपर भी इसका प्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप उसको भी सम्यग्दर्शन हो जाता है | जैसे आप लोगो ने अभी ताली बजाया लेकिन जो नहीं बजाया आपको बजाते देखकर उसके भी भाव ताली बजाने के हो जाते हैं|

ऐसे ही सम्यग्दृष्टि को देखकर मिथ्यादृष्टि का भाव सम्यग्दृष्टि के जैसा हो सकता है | धार्मिक अनुष्ठान आप लोगो को करना चाहिये लेकिन संक्लेश के साथ न करो किन्तु विशुद्धि के साथ करोगे तो बहुत बड़ा काम हो सकता है | वो क्या विशुद्धि है ? शुक्ल लेश्या होगी तो उसको कर्म बंध वर्तमान में होगा तो जो कोढ़ा – कोढ़ी वर्ष तक होता है | एक व्यक्ति को आप स्वस्थ्य, प्रसन्न देखकर के अनेक धार्मिक अनुष्ठान गतिविधियाँ जो वो समाज में कराता रहता है उसको देखकर भी बहुत लोग उससे प्रभावित हो जाते हैं और आस पास का वातावरण भी इससे प्रभावित होता है |

अच्छे भाव परिणाम के फलस्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव कि अपेक्षा ऐसे फल देते हैं जिसके कारण हमारी आत्मा में शांति का अनुभव होता है | इस प्रकार यहाँ बैठे – बैठे भी समय का सदुपयोग किया जा सकता है जो आपको देखकर, सुनकर और भी लोगो को इसकी अनुभूति होगी तो इसका फल आपको बोनस (पुण्य) के रूप में आपको मिल सकता है |