क्यों महामहोत्सव का उचित प्रचार, गुणगान नहीं? पारस प्रभु के 2900वें जन्म कल्याणक का

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04 जनवरी 2024 / पौष कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
॰ अंतिम 3 तीर्थंकरों के कल्याणक गणना के साथ मनाये, जन-जन तक प्रभावना पहुंचायें
॰ सत्य रूपी मिठास पर मिथ्यावर्क, सुरक्षा के लिये करो वर्क, वर्ना कई कर रहे बेड़ागर्क

वर्तमान जिनशासन नायक श्री महावीर स्वामी के 2500 व 2550वें मोक्ष कल्याणक और 2600वें जन्म कल्याणक को पूरे देश में मनाया गया, परन्तु पारस प्रभु के 2800 वें मोक्ष कल्याणक के बाद 2900वां जन्म कल्याणक हम भूल रहे हैं। न कोई महामहोत्सव की तैयारी, न कोई विशेष प्रचार, न कोई गुणगान। शायद यही कारण है कि किसी की 100वीं, 200वीं जयंती पर बड़े-बड़े नेता दौड़े आते हैं, बधाईयों का तांता लग जाता है, पर 23वें तीर्थकर का 2900वां जन्मकल्याणक महामहोत्सव मनाने की बजाय, उनको जैनों के इतिहास से ही गायब करने की कोशिशें शुरु हो जाती है।

ऐसा तब पूरे विश्व में प्रचारित करने का प्रयास किया जी-20 में, जब भारतीय संस्कृति पर हमारे प्रधानमंत्री ने एक बुकलेट जारी की। भारतीय संस्कृति की वैदिक परम्परा को 10 हजार वर्षों तथा जैन संस्कृति को मात्र 2650 वर्षों तक समेट दिया गया। कोई विरोध नहीं, कोई स्पष्टीकरण नहीं, कोई जागरूकता नहीं, कोई आवाज नहीं उठी, जैसे ऐसे कोरे झूठ को जैन ही सच मानने को तैयार बैठे थे। कारण कोई भी हो, पर आज मौन रहना, हानिकारक साबित हो रहा है जैन संस्कृति के लिये, हैरानगी है एक तरफ जैन संस्कृति को मिटाने की कोशिशें और दूसरी तरफ विद्वतजनों की गहरी चुप्पी। यही कारण है अनर्थ को समर्थन मिलता है, फिर बच्चों को बचपने से वो पढ़ा देते हैं, जिसे मिटाना संभव नहीं होता, यह विद्वतजनों का मौन एक प्रकार से जैनों की सहमति बन जाता है।

हम ही महोत्सव नहीं मानायेगें, भुलायेंगे, तो कौन जगाएगा, बचाएगा। कहते हैं कि आवाज उठाई तो अपराधी घोषित हो जाओगे। सत्ता के विरोधी कहलाओगे। धर्मप्रधान भारत में राष्ट्र विरोधी कहलाने लग जाओगे। यानि आज गलत को गलत कहना भी अपराध है। पर किसी को तो, सत्य के लिये इस हवन कुंड में अपनी आहुति के लिये तैयार होना पडेÞगा।

22वें, 23वें व 24वें तीर्थंकरों के कल्याणकों की गणना हमें मालूम है, फिर उनकी भी क्यों प्रभावना, प्रसार उसके साथ क्यों नहीं? 07 जनवरी को पारस प्रभु का जन्म तप कल्याणक मनाना है जोर-शोर से और यह कहकर की 2900वां है।
क्यों चुप्पी, क्यों मौन?

जब चारों ओर मचा हो शोर, सत्य के विरुद्ध,
तब हमें बोलना ही होगा, शीश कटाना पड़े या न पड़े
तैयार तो उसके लिये रहना ही होगा।


आवाज आई तो दिल्ली के लालमंदिर से, जहां इसे ऐतिहासिक बनाने के लिये आचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज की अगुवाई में एक ठोस कदम उठाया। 2900 कलशों के साथ महामस्तकाभिषेक के साथ उपहार व इनाम भी। ऐसे कार्यक्रम हर जगह होने चाहिये। महामस्तकाभिषेक, विधान, स्तोत्र आदि का, साथ ही उनके चारित्र का गुणगान भी, खूब जोर-शोर से प्रचार-प्रसार होना चाहिए।
पर हमें तो, अब चुप रहना ज्यादा समझदारी दिखता है।

इतिहास को कोई छोटा करे, सब चलता है।
पर क्यों अपनी संस्कृति के लिये,
क्या कभी दिल मचलता है?
यह 2900वां जन्म तप कल्याणक
बहुत कुछ कहता है।
सच ना बोले, दोषी वह भी है,
जो झूठ को सहता है।

भूल गये 2800वां मोक्षकल्याणक पारस प्रभु का, गणना के हिसाब से महामहोत्सव मनाने से, अब ऐसा ही कुछ हो रहा है इस पौष कृष्ण एकादशी को आ रहे 2900वें जन्म-तप कल्याणक पर।