लाखों की प्यास बुझती है, हर चर्या अतिशय-सी दिखती है, दिव्य देशना में अमृतवाणी झरती है: महायोगीआचार्य श्री विद्यासागर साधना के हिमालय

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आचार्यश्री के 50वें आचार्य पदारोहण पर विशेष :
(विलक्षण आध्यात्मिक यात्रा के पथिक आचार्य श्री विद्यासागर )

श्रमण संस्कृति की गौरवशाली परंपरा में परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रभावक शिष्य संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अपनी आगमोक्त चर्या और आध्यात्मिक चिंतन के द्वारा निरंतर आत्मसाधना व प्रभावना में संलग्न हैं। आप श्रमण परंपरा के विलक्षण और तपस्वी संत हैं। आपने समाज और संस्कृति को भी एक नई दिशा दिखाई है।
आचार्य श्री का जन्म : आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 1946 में शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मती ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण जी महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया।

ऐसे बने विद्या के सागर : कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए आचार्यश्री ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही आचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया। दौर शुरू हुआ तो आचार्य श्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

50वे आचार्य पदारोहण दिवस पर डाक विभाग जारी करेगा आवरण : हम सभी का सौभाग्य है कि हमें आचार्यश्री का 50वां आचार्य पदारोहण दिवस मनाने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, इस अवसर पर जहाँ पूरे देश में विशेष आयोजन होंगे वहीं भारतीय डाक विभाग द्वारा अनेक राज्यों के अनेक मंडलों से आचार्यश्री पर बड़ी संख्या में कवर चित्र जारी किए जाएंगे, जो की ऐतिहासिक होंगे।

परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज न केवल श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं बल्कि पूरी भारतीय संस्कृति को उन्होंने अपनी साधना से गौरवान्वित किया है।

कृतित्व सार्वभौमिक : आज तक के इतिहास में किसी भी संस्कृत भाषा के विद्वान ने पांच शतक से ज्यादा संस्कृत भाषा में नहीं लिखे हैं किंतु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपनी लेखनी से संस्कृत भाषा में छ्ह शतक लिखे हैं। उनका कृतित्व सार्वभौमिक है ,ज्ञान,ध्यान, तप के यज्ञ में आपने स्वयं को ऐसा आहूत किया कि अल्पकाल में ही प्राकृत ,संस्कृत,अपभ्रंश, हिंदी,अंग्रेजी, मराठी,कन्नड़ भाषा के मर्मज्ञ साहित्यकार के रुप में प्रसिद्ध हो गये। नई शिक्षा नीति में भी आपके मार्गदर्शन को शामिल किया गया है।

जन-जन की आस्था के केंद्र : आचार्यश्री मात्र जैनों के ही नहीं जन-जन की आस्था के केंद्र हैं। इनकी प्रेरणा से हजारों गौवंश की रक्षार्थ दयोदय गौशालाएं संचालित हो रही हैं,हिंदी भाषा अभियान,इंडिया हटाओ भारत लाओ अभियान, हथकरघा स्वावलंबन रोजगार,स्वदेशी शिक्षा,संस्कृत, हिंदी ,अंग्रेजी का बेजोड़ साहित्य,हाइकू आदि उनकी श्रेष्ठतम साधना उन्हें संत शिरोमणि कहलाने के लिए काफी है।

आचार्यश्री की तप साधना के कारण प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति सहित लाखों जैन-जैनेतर श्रद्धालु उनके चरणों में श्रद्धा से शीश झुकाते हैं। आचार्यश्री की प्रेरणा से प्रतिभास्थली के माध्यम से बेटियों को संस्कारयुक्त शिक्षा देने का उपक्रम स्तुत्य है।
जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित करने के कारण उनके व्यक्तित्व में विश्व-बन्धुत्व की, मानवता की सौंधी-सुगन्ध विद्यमान है। आचार्यश्री की महत्त्वपूर्ण कृति ‘मूकमाटी’ की एक कविता को मध्यप्रदेश सरकार ने कक्षा 9 के पाठ्यक्रम में शामिल किया है।

व्यक्तित्व अत्यंत गंभीर है : आचार्यश्री का व्यक्तित्व अत्यंत गंभीर है, रत्नत्रय के धारी मोक्षमार्ग के पथिक हैं। वे साधना के हिमालय हैं। आचार्यश्री साधना की एक पाठशाला हैं। वे सत्य की साधना के साथ प्रयोग करते हैं। विभिन्न भाषाओं के वेत्ता आचार्यश्री चलते-फिरते विश्वविद्यालय हैं, इस सदी के महायोगी हैं। वे गंभीरता से तत्त्व का चिंतन करते हैं।

आचार्यश्री ने भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति के रूप में आयुर्वेद के संरक्षण और उसके व्यावहारिक अनुप्रयोग पर विशेष बल दिया है । उनके आशीर्वाद से जबलपुर मध्यप्रदेश में पूर्णायु आयुर्वेद चिकित्सा और अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना हुई है । इस केन्द्र में अहिंसक शुद्ध और सात्विक विधि से निर्मित औषधियों से बड़े से बड़े रोगों का समूल निदान किया जाता है ।

महान साधक, कठोर साधना :
ठंड, बरसात और गर्मी से विचलित हुए बिना आचार्य श्री ने कठिन तप किया। उनका त्याग और तपोबल आज किसी से छिपा नहीं है। टीवी, मोबाइल, लैपटॉप आदि आधुनिक सुविधा साधु के कमरे में नहीं दिखती। संघ में सभी संत, साधु शिक्षित, संस्कारी, बाल ब्रह्राचारी हैं।चौका कितना आसान मात्र दाल-फुलका, न सब्जी, न फल, न घी। चाहे कितनी ही तेज गर्मी हो या कितनी ही कड़कड़ाती ठंड, संघ के किसी साधु के कमरे में कूलर, एसी, हीटर देखने को नहीं मिलते। न पंखे का उपयोग करते, न ही मच्छर भगाने वाले किसी ऑयल या कायल का उपयोग करते, धन्य है ऐसी साधना। किसी तरह के तंत्र, मंत्र , ताबीज आदि की क्रियाओं से आचार्यश्री का संघ अछूता है।

इसी तपोबल के कारण सारी दुनिया उनके आगे नतमस्तक है। 50 वर्ष से अधिक समय से एक महान साधक की भूमिका में हैं। उनके बताए गए रास्ते पर चलकर हम देश तथा संपूर्ण मानव जाति की भलाई कर सकते हैं।आचार्य श्रेष्ठ प्राणी मात्र का कल्याण करने वाले हैं।आचार्य श्री ने नवयुवकों के लिए दीक्षा देकर उन्हें संयम के पथ पर चलाया है।आज उनके संघ में हजारों श्रावक व श्राविकाएं संयम के पथ पर चल रहे हैं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज भारतीय संस्कृति के संवाहक हैं। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वदेशी अपनाएं, पर्यावरण-स्वच्छता अभियान,हिंदी अपनाएं, संस्कृति बचाओ जैसे अभियानों को वे निरंतर गति दे रहे हैं।

आचार्यश्री का संदेश स्वदेशी अपनाएं : आचार्यश्री का कहना है कि अपने ही देश में निर्मित होने वाले कपडे को पहनों व विदेशी बस्त्रों का त्याग करो ,जिससे पुनःभारत देश भारत बन जाये।हमारा देश सोने की चिडिया कहलाने लगे।

प्रतिभास्थली से बेटी पढ़ाओ अभियान को मिली नई दिशा : आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का सपना है कि हमारी बेटियाँ पढाई को निरंतर रखें व पढाई में अग्रणी हों व उन्हें लौकिक शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक शिक्षा भी मिले इसी उद्देश्य को लेकर आज देश के पांच स्थानों पर महाराष्ट्र के रामटेक,छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ व मध्यप्रदेश के जबलपुर,इंदौर, उत्तर प्रदेश के ललितपुर में प्रतिभा स्थली संचालित हो रही हैं।जिनमें बालिकाओं को शिक्षा देकर उन्हें संस्कारित कर संस्कार के पुष्प पल्लवित हो रहे हैं। आचार्य श्रेष्ठ का सपना है कि हमारी बेटियां पढ़-लिखकर अपना व माता-पिता,समाज का नाम रोशन करे।
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज न केवल श्रमण संस्कृति के दैदीप्यमान नक्षत्र हैं बल्कि पूरी भारतीय संस्कृति को उन्होंने अपनी साधना से गौरवान्वित किया है।

हर चर्या अतिशय-सी दिखती है :
आचार्यश्री को पाकर लगता है न जाने कितने जन्मों का पुण्य आज फलित हो रहा है। आचार्यश्री चलते फिरते तीर्थ हैं। उनके तेज दमकते हुए आभामंडल और मुस्कान को देखकर हजारों लोगों के दुख दूर हो जाते हैं। आचार्यश्री के दर्शन जो भी करता है व धन्य हो जाता है। उनकी दिव्य देशना में जो अमृतवाणी झरती है उसे पान कर हजारों लोगों की प्यास बुझती है। आचार्यश्री की हर चर्या अतिशय-सी दिखती है। उनकी दिव्य देशना में जो अमृतवाणी झरती है उसे पान कर हजारों लोगों की प्यास बुझती है। उनकी मंगल वाणी खिरते समय जो शांति का अमृत बरसता है, चारों ओर एक अजीब-सा सन्नाटा, मात्र आचार्यश्री की वाणी अनुगूंज सुनायी देती है। सचमुच अद्भुत और निराले संत हैं आचार्यश्री।

आचार्यश्री के सपने को साकार करने में हजारों-लाखों युवा लगे हुए हैं, हम सब मिलकर आचार्यश्री के इस 50वे आचार्य पदारोहण महामहोत्सव के अवसर पर अपने गुरूदेव के सपनों को साकार करने में अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभायें।किसी कवि की यह पंक्तियां आचार्यश्री विराटता को व्यक्त करती हैं-

*कुन्दकुन्द के समयसार का सार हमें जो बता रहे, समन्तभद्र का डंका घर-घर, द्वार-द्वार बजा रहे।
भोले-भाले अनाथ जन के जो हैं पावन धाम, ऐसे विद्यासागर गुरूवर को हमारा शत-शत प्रणाम।।*

-डॉ. सुनील जैन ‘संचय’ ज्ञान-कुसुम भवन गांधीनगर, नईबस्ती, ललितपुर ,उत्तर प्रदेश
Suneelsanchay@gmail.com