जैन तीर्थ संरक्षण हेतु आवश्यक 7 कदम- सत्ता को कभी न ललकारें ,इसका दुष्परिणाम आपको स्वयं और पूरी समाज सबको भुगतना पड़ सकता है

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21अक्टूबर 2023/ अश्विन शुक्ल सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / प्रो अनेकांत कुमार जैन /नई दिल्ली

1. प्रत्येक तीर्थ से संबंधित इतिहास,पुरातात्विक प्रमाण,शोधपत्र,सभी चित्र,कोर्ट की कार्यवाही आदि सहित एक प्रामाणिक पुस्तक प्रकाशित करके ,देश के सभी अभिलेखागारों ,सरकारी पुरातत्त्व संग्रहालयों ,विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में भिजवा दीजिये । ये भविष्य में सत्य के खोजियों के लिए सहायक बनेगा ।

2. जिन तीर्थों पर कब्जे हो गए हैं लेकिन इतिहास और कोर्ट हमारे पक्ष में है ,इससे संबंधित प्रमाण संस्कृत में उल्लिखित करवा कर एक दो ताम्रपत्र अपने कब्जे वाले स्थान में गढ़वा दीजिये । ये भविष्य में काम आएगा जब हमारा प्रभुत्व होगा ।

3.जहाँ हमारे तीर्थ हैं और जैन समाज नगण्य है वहाँ कुछ कमजोर स्थिति वाले जैन परिवारों को रोजगार देकर बसाया जाय ताकि एक दिन वहाँ हमारी समाज बन सके और तीर्थ के प्रति समर्पित जैन वहाँ रहें । वे भविष्य में तीर्थों के स्थानीय संरक्षक बनेंगे ।

4. एक उच्च स्तरीय ऐसी अंतरराष्ट्रीय कमेटी बने जिसमें बहुत अधिक प्रभावशाली जैन प्रशासनिक,वकील ,नेता,प्रोफेशनल,और बहुत बड़े उद्योगपति हों । वे समस्याओं को बड़े स्तर पर अपने प्रभाव से सुलझाएं ।

5. आप लड़ाई का माहौल मत बनने दें । युक्ति पूर्वक अपने अधिकारों का संरक्षण करें । यही हमारे पूर्वजों ने भी किया है ।मुगल काल में भी जैन तीर्थ और धर्म का संरक्षण हमारे पूर्वजों ने साथ देकर सहयोग लेने की नीति के तहत ही किया था
क्यों कि आर पार की लड़ाई आप लड़ नहीं सकते,सिर्फ मैनेज कर सकते हैं ।

6. सत्ता का साथ देकर उससे सहयोग लेने की नीति ही एक मात्र मार्ग है जिससे चल अचल तीर्थों का संरक्षण किया जा सकता है । विषापहार स्तोत्र का वाक्य है – मूलस्य नाशो बलवद्विरोधः । बलवान से विरोध मूल से नाश का कारण बन जाता है ।

7.. मुनिराज आचार्य भगवंत सभी हमारे चल तीर्थ हैं ,मेरा उन सभी से निवेदन है कि अपने प्रवचनों में सत्ता को कभी न ललकारें ,इसका दुष्परिणाम आपको स्वयं और पूरी समाज सबको भुगतना पड़ सकता है । रक्षाबंधन कथा के अनुसार अकंपनाचार्य की नीति अपनाएं ,श्रुतसागर जी जैसी भूल न करें क्यों कि वर्तमान में कोई विष्णुकुमार नहीं हैं ।