मोदी की बटरमालिश और दब्बू जैन समाज, आचार्य श्री सुनील सागरजी ने भारत मंडपम पर दी कड़ी प्रतिक्रिया

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॰ क्यों चूक गये, डब्बू बने, चापलूस बने ॰ बटरमालिश की नहीं, अपनी बात कहने का जज्बा रखिये
॰ आचार्य श्री विद्यासागर का सपना पूरा हुआ, इण्डिया हार गया, भारत जीत गया
॰ मोदी जी का विरोध नहीं, पर जैनों के लिये क्यों कुछ नहीं?
॰ निर्वाण कल्याणक महोत्सव का शुभारंभ संतों ने किया, मोदी जी का समापन पर इंतजार रहेगा
॰ अयोध्या की तरह तीर्थंकर भूमियों का भी विकास हो
॰ सादा चाय वाला प्रधानमंत्री बन सकता है, तो सादी आत्मा भी पुरुषार्थ से परमात्मा बन सकती है।
॰ महावीर से पहले 23 तीर्थंकर हुए। पारस प्रभु का 2900वां जन्म कल्याणक और 2800 निर्वाण कल्याणक महोत्सव का समापन आ रहा है।

03 मई 2024/26 अप्रैल 2024 / बैसाख कृष्ण तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
पांच मिनट में क्या नहीं हो सकता, आप बटर मालिश करो या फिर अपनी बात कहो। यह कहते हुए आचार्य श्री सुनील सागरजी के माथे पर उभर रही लकीरें और शांत प्रसन्न स्वभाव भी जैसे कोई अफसोस मना रहा था, कि जैसे मैं क्यों नहीं था, वहां भारत मंडलपम में 21 अप्रैल को।

जी हां, सान्ध्य महालक्ष्मी टीम, श्री अग्रवाल प्राचीन दिगम्बर जैन पंचायत, लालमंदिर कमेटी के नेतृत्व में कृष्णानगर, ऋषभ विहार, शाहदरा, विश्वास नगर, दरियागंज, चांदनी चौक, आदि भक्तों के साथ पहुंची, उसी नसीराबाद में, जहां आचार्य श्री विद्या सागरजी का आचार्य पदारोहण हुआ तथा दादा गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागरजी की समाधि हुई। उस पावन धरा पर जहां किशनगढ़, अजमेर, जयपुर से भी भक्त मौजूद थे, तब धर्मसभा में भारत मंडलपम में घटनाक्रम की सान्ध्य महालक्ष्मी ने जानकारी दी। तब आचार्य श्री सुनील सागरजी से यह भी कहा कि विज्ञान भवन में जैसा आपने जैन समाज की बातों को कहा था, तो क्या भारत मंडलपम में भी प्रधानमंत्री के सामने तीर्थों की, गिरनार की बात कहते, तो किस तरह, इस पर आचार्य श्री ने कहा कि विज्ञान भवन में तो सबने देखा ही है।

‘कौन थे, क्या हो गये, इतने दब्बू तो पहले नहीं थे। इतना बड़ा अवसर और हम चूक गये। वक्ताओं की चापलूसी भरी बातें, बड़ी विचित्रता रही। अवसर तो बहुतों को मिलता है, पर अधिकांश उसका लाभ उठा नहीं पाते, और जो उठाता है, वो हनुमान बन जाता है और राम से कहीं ज्यादा उसके मंदिर बन जाते हैं।’ यह कहते हुये आचार्य श्री ने उसी अंदाज में कहना शुरू किया, मानों वे प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में भारतमंडपम में बोल रहे हों –

जिस धरती पर तिरंगा खड़ा है, उस देश का नाम चक्रवर्ती भरत के नाम से भारत पड़ा है। गुलामी की डिक्शनरी की शब्दमाला का एक शब्द और बीत गया इण्डिया हार गया, भारत जीत गया। विद्या सागरजी जैसे संतों की बड़ी भावना थी कि देश भारत कहलायें।
मोदी के लिये भी कहते, तो यह कहते,
‘बच्चा सुरक्षित है, मां की गोदी में
देश सुरक्षित है नरेन्द्र मोदी में’

थोड़ा जैन तीर्थों पर भी ध्यान दीजिए, थोड़ा गिरनार को भी देख लीजिए। जो जैन पुरातत्व का नुकासन हो रहा है, नजर उन पर भी जानी चाहिए। जब जैन लोग आपका सम्मान करते हैं, तो राजनीति में इनका भी सहयोग लीजिए। लोकसभा में तो जैनों को भी एक सीट मिलनी चाहिए। शेष

यह अवसर था भारत मंडपम में कि जैन समाज की सारी भावनायें, सरकार के सामने रखते। पांच मिनट में क्या नहीं हो सकता। कहिये, काम करिये। जब तक मुंह से बात नहीं निकलेगी तो कहीं पहुंचेगी भी नहीं, एक दिमाग में विचार पैदा होता है। विचार शब्द बनता है और शब्द ठिकाने तक पहुंचते हैं, पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि सही बात कहने का जज्बा भी होना चाहिए, चक्रवर्ती तो भरत थे, छह खण्ड पर राज किया और अन्तत: मुनि बनकर मोक्ष प्राप्त किया। ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र।

प्रधानमंत्री जी के अतीत को सामने रखते हुए आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा कि जब सादा चाय बेचने वाला व्यक्ति देश का प्रधानमंत्री बन सकता है, तो सादा आत्मा पुरुषार्थ करके क्या भगवान नहीं बन सकता। अपनी योग्यता और पुरुषार्थ से, अपने पुण्य, क्षेत्र, काल, भाव से आत्मा परमात्मा बन जाता है। एक सादा-सा श्रावक कर्नाटक से अजमेर आता है, नसीराबाद आता है और विद्यासागर बन जाता है। स्पष्ट है कि आत्मा में बहुत कुछ बनने का सामर्थ्य है। कुछ भी बनने के लिये कुछ तो कोशिश करनी पड़ती है, पर सबकुछ पाना है, तो कुछ नहीं करना है। बस हाथ पर हाथ रखकर बैठ जायें।

सान्ध्य महालक्ष्मी ने इस अवसर पर बताया कि वह दिन था महावीर स्वामी के 2623वें जन्म कल्याणक का और सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने 200 अखबारों में विज्ञापन छापा 2550वें महावीर स्वामी निर्वाण महोत्सव समारोह का, पूरा देश सोच रहा होगा कि ये कैसे जैन हैं, जो जन्म कल्याणक पर मोक्ष कल्याणक मनाते हैं?

इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा कि यह महावीर भगवान के निर्वाण कल्याणक का उद्घाटन नहीं है, उद्घाटन में तो आप आये ही नहीं, उद्घाटन तो 26 नवम्बर 2023 को हम सब मुनि संघों के सान्निध्य में हुआ। उस समय भी दस हजार से ज्यादा श्रावक-श्राविका उपस्थित थे, लाल मंदिर के सामने, लालकिला मैदान में। यह तो महावीर जन्म कल्याणक है, 2623वीं महावीर जयंती मनाओ और 2550वें निर्वाण कल्याणक समापन पर वापस आओ। शुरू में नहीं आये, तो आखिर में आओ।

आचार्य श्री ने आदि-वीर को स्मरण करते हुए कहा कि महावीर के पहले भी तीर्थंकर हुए हैं, जिसमें पार्श्वनाथ भगवान हैं और देश में पूरी श्रद्धा के स्थान है, लालमंदिर में बरसों से मूलनायक भगवान हैं। उनका 2800वां मोक्षकल्याणक समापन इस मुकुट सप्तमी को आएगा और 2900वां जन्म कल्याणक समापन समारोह आगामी पौष कृष्ण एकादशी को आएगा। जैन धर्म का इतिहास बहुत पुराना है। जिस अयोध्या में श्रीराम पैदा हुए हैं, वहां उनके पहले पांच तीर्थंकर पैदा हुए हैं। अयोध्या का जैसा विकास हो रहा है, वैसा ही तीर्थंकर भूमियों का भी विकास होना चाहिए।

बंटते जैनों को एक होने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि जैन समाज के सभी वर्गों को एकजुट होकर मिलकर रहने की जरूरत है। आपसी झगड़े, टंटों को इधर-उधर फैलाने की बजाय आपस में निबटाने की जरूरत है। हम वो लोग हैं, जो दूसरों का निर्णय करते थे, न्याय करते थे। भिखारियों की तरह कोर्ट में बैठे हाथ जोड़ने वालों में से नहीं है, जो अपनी शक्लें बना ली हैं। लोग हम से फैसला कराने आते थे। हमें अपनी गरिमा, रुतबा को भी संभालना है। यह जैन समाज ही नहीं, पूरा देश महावीर का परिवार है।