दिगम्बर संतों में सबसे बड़ी वार्षिक बढ़ोतरी- सबसे ज्यादा 193 संत बढ़े गत वर्ष में, 25 वर्षों में लगभग दो गुने हुए- 110 साल में 3 से 1794 दिगंबर संत- मुनियों की संख्या पहली बार 500 व आर्यिकाओं की संख्या 600 के पार

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21अक्टूबर 2023/ अश्विन शुक्ल सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन/EXCLUSIVE

अगर इतिहास चक्र को 110 साल पहले तक घुमा लें, यानि 1913 से वर्तमान में चल रही तीन संघ परम्पराओं में से पहले आचार्य श्री आदि सागर अंकलीकर ने दिगम्बर रूप में पहली दीक्षा ली,1920 में आचार्य श्री शांति सागर (दक्षिण) न तथा तीन वर्ष बाद 1923 में आचार्य श्री शांतिसागर (छाणी)ने स्वयं मुनि दीक्षा लेकर, तीन परम्परायें दिगम्बर संतों की शुरु हुई। उसके पूर्व भी दिगम्बर संत रहे पर उस समय के काल के प्रभाव से उन्हें विहार के समय कपड़े के घेरे में जाना पड़ता था। पर इन तीनों ने उस दिगम्बरत्व को पुन: जीवित कर दिया, जो मुगलकाल के समय, वन, पर्वतों, जंगलों तक ही शायद सीमित रह गया था।
इन 110 सालों में विशेष कर पिछले 25 सालों में दिगम्बर संतों में कैसे वृद्धि हुई है? आज सांध्य महालक्ष्मी, उन्हीं आकड़ों को आपके बीच लाया है। ये सभी वार्षिक आकड़े चातुर्मास से चातुर्मास के अनुरुप हैं।

सबसे ज्यादा संतों की वृद्धि गत वर्ष: 193
जी हां, आज तक के इतिहास में एक वर्ष में सबसे ज्यादा दिगम्बर संतों की संख्या में वृद्धि हुई तो वह है 2022- 23, जिसमें दिगम्बर संतों की संख्या 1601 से 1794 पहुंच गई और इनमें आचार्य पद में 10 फीसदी, उपाध्याय पद पर 30 फीसदी, मुनि पद पर 5 फीसदी, गणिनी आर्यिकाएं 3 फीसदी, ऐलक व क्षुल्लक 10 फीसदी, क्षुल्लिकाएं 15 फीसदी और आर्यिकायें सबसे ज्यादा 88 यानि 18 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष दर वर्ष का यहां ऊपर चार्ट से ठीक तरह समझ सकते हैं।

पिछले 25 सालों में दिगंबर संतों की संख्या 790 से 1794 लगभग दो गुनी हो गई। आचार्यों की संख्या 20 वर्षों में दोगुनी होकर 100 के पार हुई तो वहीं उपाध्यायों की संख्या 2012 के 33 से आज भी एक तिहाई कम है, जैसे उपाध्याय पद पर रहना न गुरु पसंद करते हैं, न मुनि।
हां 25 वर्षों में केवल एक बार 2016 में उपाध्यायों की संख्या 22 आई। वहीं 2011 व 2012 में दिगंबर संतों की संख्या 1295 पर स्थिर रही। शेष सभी वर्षों में वृद्धि देखी गई, जबकि गत वर्ष सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई।

आईये अब अलग-अलग देखते हैं- आचार्य पद- बहुत उतार-चढ़ाव के बाद बढ़ती संख्या

25 वर्षों आचार्य परमेष्ठी पद पर गिनती में काफी उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। हम 25 वर्षों में केवल एक बार 2002 में आचार्य पद पर गिनती 50 से नीचे गई। वहीं सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी 13 की 2007 में हुई गत वर्ष भी10 की वृद्धि हुई। 25 वर्षों में 2 बार पिछले वर्ष की अपेक्षा गिनती में कमी आई। पिछले 3 वर्षों में 16 फीसदी वृद्धि, तो उससे पूर्व के 3 वर्षों में गिरावट देखी गई।
वर्तमान में वैसे कहा जाता है कि आचार्य पद पाने की जल्दी ज्यादा रहती है, जबकि उपाध्याय पद को छोड़, मुनि से सीधा आचार्य पद दे दिया जाता है, गुरु के द्वारा पद, फिर समाज के द्वारा, अब तो पट्टाचार्य के अलावा परम्पराचार्य पद भी दिये जाने लगे। क्या आगम में, पंचपरमेष्ठी में इसका उल्लेख है?

मुनि हुए लगभग दोगुने

24 साल पूर्व जहां साधु परमेष्ठी की संख्या 266 थी वह अब लगभग दो गुनी हुई है, जो 25 अक्टूबर 2023 को बड़ौत में 8 दीक्षाओं के साथ दोगुनी को पहली बार पार कर जायेगी। इन 25 सालों में 6 बार, पिछले वर्ष की संख्या से कम हुई वहीं शेष में वृद्धि हुई। 2001 में 300 के पार, 2011 में 400 के पार और अब 2023 में 500 के पार गिनती हुई यानि औसतन प्रतिवर्ष 10 की गति से बढ़ोतरी हो रही है।

गणिनी आर्यिकायें हुई 6 गुना, आर्यिकायें लगभग दो गुना

इन 25 वर्षों में न्यूनतम 8 गणिनी आर्यिकायें 2001 से 2003 तक, लगभग 3 वर्ष वह स्थिति रही और 2003 की 8 की संख्या में 20 साल में 7 गुना वृद्धि हो गई, किसी और पद पर इतनी बढ़ी वृद्धि कहीं नहीं देखी गई।
आर्यिकाओं में भी इन 25 सालों में 7 वर्षों में गिरावट सामने आई। और गत वर्ष पहली बाद संख्या 600 के पार पहुंची। गत वर्ष सबसे ज्यादा 88 आर्यिकाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई, जो अपने आप में एक रिकार्ड है।

क्षुल्लिकायें 5 गुना, क्षुल्लक 3 गुना बढ़े

1999 में मात्र 45 क्षुल्लिकायें, वर्तमान में 228 को पार कर रही है और इनमें सबसे ज्यादा 37 की बढ़ोतरी गत वर्ष में ही हुई। क्षुल्लिकाओं की संख्या 79 से 220 के पार पहली बार पहुंची। 2008 में क्षुल्लिकाओं की संख्या सबसे ज्यादा 15 की गिरावट आई, वहीं 2014 में सबसे ज्यादा 45 की वृद्धि हुई।