13-20 का समागम, प्रतीक रूप में संत महासम्मेलन-गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के 70वें संयम दिवस व 88वें जन्म दिवस पर

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 22 अक्टूबर 2021
कनाट प्लेस बड़ी मूर्ति स्थल या कहें 31 फुट उतुंग चक्रवर्ती भगवान भरत मूर्ति के प्रांगण में 18 से 20 अक्टूबर तक शरद पूर्णिमा महोत्सव के रूप में गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी का 70वां संयम दिवस व 88वां जन्म दिवस पर त्रिदिवसीय एकता संगम का लघु रूप प्रस्तुत हुआ। आज दिगम्बर जैन समाज 13 और 20 में बंटा हुआ है, विभिन्न जातियों से अपनी पहचान कर रहा है, उसी में एक जोड़ का प्रयास था यह महोत्सव।

ज्ञानमती माताजी त्याग-तपस्या की मूर्ति – लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला
इस कार्यक्रम के राजनीतिक स्तर से प्रमुख सितारे रहे लोकसभा स्पीकर ओम बिड़लाजी, जिनकी अगुवाई में दो ग्रन्थों का विमोचन हुआ, उन्होंने कहा कि त्याग और तपस्या की मूर्ति हैं ज्ञानमति माताजी, जिन्होंने 70 साल के संयममय जीवन में देश भर का भ्रमण कर मानव कल्याण और मानव जीवन के मार्ग को प्रशस्त किया। 70 साल पहले सांसारिक जीवन को त्यागकर तीर्थंकरों के बताये मार्ग पर चलीं माताजी का 70वां संयम दिवस है। उन्होंने करोड़ों लोगों के जीवन को बदलने का प्रयत्न किया। महावीर स्वामी के अहिंसा व सत्या के मार्ग पर चलकर ही आज समाज को सही दिशा में ला सकते हैं। विपत्ति के समय जैन समाज ने हमेशा सहयोग में आगे बढ़कर भूमिका निभाई है, चाहे वो क्षेत्र हो चिकित्सा का या शिक्षा का, अन्न की जरूरत या अन्य सेवा की।

यह मेरा नहीं, संयम-ज्ञान की अनुमोदना है – ज्ञानमती माताजी
गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी ने कहा कि एक घंटे का मुनि भी पूज्य है। इस अवसर पर विभिन्न संतों ने जो गुणानवाद किया, वह मेरा नहीं, वह तो संयम और ज्ञान की अनुमोदना कर रहे हैं। उन्होंने वैष्णव समाज के वायु पुराण, भागवत, अग्नि पुराण आदि के उल्लेख कर स्पष्ट किया कि प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम पर ही हमारे देश का नाम भारत पड़ा, और ऐसे 22 प्रमाण हैं। उन्होंने कहा कि अहिंसा से ही पर्यावरण की शुद्धि हो सकती है। अहिंसा प्रधान भारत की संस्कृति शाकाहार व उच्च विचार का है।

आचार्य श्री अनेकांत सागरजी ने इस अवसर पर 88 किलो के लाडू से गणिनी आर्यिका श्री का अभिनंदन किया।
आचार्य श्री सौभाग्य सागरजी ने अपने बीते जीवन का अनुभव बताते हुए कहा कि जब छोटा था, तो मां ने हाथ में पुस्तक थमाई ‘बाल विकास’, फिर दीक्षा के समय आचार्य श्री सिद्धांत सागर ने पुस्तक दी ‘मुनि चर्या’ और उसके कुछ वर्ष बाद गुरुजी ने ग्रंथ दिया ‘मूलाचार’ – ये तीनों ही ज्ञानमती माताजी के लिखे हुए थे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि परम्परायें नहीं तोड़नी चाहिए, प्राचीन परम्परा का विध्वंस नहीं होना चाहिए।

आचार्य श्री प्रज्ञ सागरजी ने कहा कि आदिनाथ से आज तक शास्त्रों को लिखने की परम्परा आचार्यों की थीं, पर 20वीं व 21वीं सदी में आर्यिकाओं ने लेखन शुरू किया और उनमें ज्ञानमती माताजी सबसे अग्रणी हैं।
उन्होंने मल्लिनाथ जी और नमिनाथजी की जन्मस्थली के जनकपुरी (बिहार) के विकास की अपील की तो रवीन्द्र स्वामी ने तुरंत कहा कि वहां का काम चल रहा है और आगामी जनवरी में पंचकल्याणक भी हो रहा है, वहां सवा ग्यारह फुट की पदमासन प्रतिमा स्थापित की जा रही है।

आचार्य श्री विभक्त सागरजी ने कहा कि आज हर घर में एक जिनवाणी और शास्त्र जरूर स्थापित करें। आज युवा विमुख हो रहा है, क्योंकि पहले माता-पिता ने दबाव के साथ संस्कार नहीं दिये और अब साधु लोगों का ध्यान नहीं है। मंदिरों की स्थापना हो रही है, पर मंदिरों में पूजा-अराधना कौन करेगा, इस पर ध्यान नहीं है। जगह-जगह पाठशालायें लगानी चाहिये।

आचार्य श्री अतिवीरजी ने कहा कि एक नदी शांति सागरजी -वीर सागरजी रूपी पर्वत से निकली और जिसने अनेक तीर्थों को संचित किया, वह नदी है ज्ञानमती माताजी। 16 वर्ष की उम्र में क्षणिक और शाश्वत सुख का भेद जान लिया। जब युवा व्यसन की ओर मुड़ते हैं, तब इन्होंने पूजा की थाली पकड़ ली। पुरुष प्रधान समाज में माताजी के अपवाद के रूप में शिखर पर पहुंच कर वंदनीया स्थान बनाया है। मुनियों के पीछे तो ‘सागर’ लग जाता है पर माता जी के पीछे नहीं लगा, किंतु वह भी एक सागर हैं। जैसे वैष्णव धर्म में चार धाम की यात्रा होती है, ऐसे ही जैन धर्म में दक्षिण में बाहुबली, मध्य भारत में ऋषभनाथ और अब अयोध्या में भरत भगवान की प्रतिमा स्थापित हो जाये तो जैन धर्म में भी तीन धाम की यात्रा हो जाएगी।

मुनि श्री विभंजन सागरजी ने कहा कि आप लोग बर्थ डे के रूप में व्यर्थ डे मनाते हैं और जो कुछ यादगार कार्य करते हैं, उनकी जन्म जयंती – संयम महोत्सव मनाये जाते हैं। ज्ञानमती माताजी ने 500 से ज्यादा ग्रंथों की रचना ही नहीं की, बल्कि अनेक त्यागी-व्रतियों को अध्ययन भी कराया, उनमें से कुछ तो आज मुनि से आचार्य पद पर आसीन हैं।
मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा कि सबसे वयोवृद्ध और सबसे लम्बी दीक्षा वाली माताजी के जीवन को जीवंत रखने के लिये देश में भरत चक्रवर्ती भगवान की 108 प्रतिमायें विराजमान करनी चाहिए।

मुनि श्री प्रथमानंद जी ने कहा कि धर्म के प्रसार में, तीर्थों के निर्माण में, कलम से रचनाओं का लेखन कर चहुंमुखी विकास किया।

आर्यिका श्री चन्द्रमति माताजी ने कहा कि 1996 में माताजी के दर्शन मांगीतुंगी में हुए, उसके बाद 25 वर्ष अब दर्शन पाकर धन्य हो गई। माताजी चन्द्रमा की भांति शांति का अनुभव कराती हैं। जब माताजी तीर्थंकर बनें, तब हम उनके चरणों में गणधर बनकर धर्म का प्रसार कर सकें।
क्षुल्लक श्री योगभूषण जी ने कहा कि ऐसे संत सम्मेलनों से जिन धर्म की प्रभावना का शंखनाद समय-समय पर होना चाहिए। आज समाज को नेतृत्व की तलाश है। माताजी ने जो कार्य किये, वो आगामी 50-100 सालों में शायद कोई संत आगे न कर सके।

कार्यक्रम में दीप प्रज्ज्वलन हेमचंद जैन परिवार ने किया। मंगलाचरण ब्र. प्रियांश जैन व मंच संचालन की कमान आर्यिका चन्दामति माताजी, रवीन्द्र स्वामी जी व पं. जीवन प्रकाश जैन ने संयुक्त रूप से संभाली। माताजी को नई पिच्छी पारस चैनल परिवार ने भेंट की।
विभिन्न क्षेत्रों से आये अतिथियों का उचित सम्मान किया गया।

प्रमोद जैन जी को सौंपी दिल्ली की कमान
सभी साधु संतों ने मंच व मंच के सामने बैठे भक्तों की स्वीकृति लेते हुये दिल्ली में दिगम्बर जैन समाज की कमान प्रमोद जैन (लेजर फेन) मॉडल टाउन को सौंपी। उन्हें अपनी टीम बनाने के लिये दो माह का समय दिया और एक जनवरी 2022 को उसकी विधिवत घोषणा की तिथि नियत की।
अब सवाल यह है कि क्या 220 मंदिर उनके नेतृत्व को स्वीकार कर अनुशासित होंगे। जिस तरह 35 वर्षों से श्री चक्रेश जैन जी ने दिल्ली जैन समाज की सेवा की, क्या उस तरह वह तन-मन-धन से पूरी तरह समर्पित हो पाएंगे, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

/ शरद जैन