श्रावकों, भक्तों के लिये क्यों जरूरी वर्षायोग? क्या करना चाहिये हमें इन चार (इस बार पांच) माह में:-

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30 जून 2023/ आषाढ़ शुक्ल दवादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ EXCLUSIVE/शरद जैन

इस शीर्षक में शायद आपको कोई विशेष बात नजर न आए, क्योंकि हर कोई जान गया है कि बरसात में कीड़ों की बहुत उत्पत्ति होती है और ऐसे अहिंसा महाव्रत का पालन करने के लिये श्रमण अपने को एक जगह सीमित रखना पड़ता है। मुनि चर्या का आवश्यक अंग है वर्षायोग।

स्थावर जंगम जीवाकुला हिदा क्षिति:,
तदा भ्रमणे महा संयम: वृष्ट्या शीतवात चवात्मविराधना।
पतेद्षाप्यादिषु स्थाणु कण्ठ कादिभिवी
प्रच्छतैर्ज्जलेन कर्दमेन वा बंध्यते इति।।


वर्षाकाल में पृथ्वी स्थावर और जंगम जीवों से व्याप्त रहती है। उस समय भ्रमण करने से महान असंयम होता है तथा वर्षा और शीत वायु बहने से आत्मा की विराधना होती है।
हां, श्रमण अपने महाव्रतों के पालन के लिये वर्षायोग स्थापना करते हैं, पर पंचम काल के 2549वें वर्ष में उसकी महत्ता श्रावकों के लिये भी अपनी जगह महत्वपूर्ण है। आज वर्षायोग की महत्ता को अपनी नजर से देखते हैं। क्या करना चाहिये हमें इन चार (इस बार पांच) माह में:-
1. अपने आने-जाने (यात्रा) पर कुछ लगाम लगायें, अगर श्रमण अहिंसा महाव्रत का पालन करते हैं, तो हमें भी उसी रास्ते चलकर हर संभव हिंसा से बचना चाहिये।
2. व्यापार आदि के लिये साल के 12 महीनों में इन 4 माह में कारोबार थोड़ा ढीला रहता है, तो क्यों न इसका सदुपयोग पापार्जन से पुण्यार्जन में करें।
3. एक चोर ने ना चाहते हुए भी वहां से गुजरते हुए एक दिगंबर मुनि के प्रवचन का एक वाक्य सुना, जेल से बचा, फिर पूरा सुना, तो जीवन बदल गया। अगर हम भी प्रवचनों का लाभ लें, तो जीवन में शुभ परिवर्तन निश्चय ही संभव है। अब यह मत कहियेगा कि मोबाइल पर ही प्रवचन सुन लेते हैं। ध्यान रखिये, धर्मसभा में प्रवचन सुनना, कई गुणा लाभकारी है, इस बार शुरूआत तो कीजिए।
4. ग्रंथों में पढ़ा है कि दिगंबर संतों को आहार देने से कर्मों की निर्जरा तो होती ही है, घर में सुख-समृद्धि का भी श्रीगणेश होता है। तो इस वर्षायोग में अपने जीवन में भी सौभाग्य लायें, आहार दीजिये, स्वयं भी शुद्ध भोजन ग्रहण कीजिए।
5. पाचक तंत्र कमजोर पड़ जाता है, इसलिए इन दिनों गरिष्ठ भोजन से दूर रहे, पत्तेदार सब्जियां न लें, जी हां, धार्मिकता नहीं, अपने स्वास्थ्य के लिये। शरीर को हल्का और सुपाच्य भोजन दीजिए।
6. इन दिनों में अपने ऊपर नियंत्रण करने का प्रयास कीजिये। इन्द्रियों के गुलाम बहुत रहे, अब उनको गुलाम बनाने की कोशिश कीजिये। हां, पूरी तरह नहीं जीत सकते, पर कुछ हद तक तो सफल होंगे ही। तनाव, अशांत चित्त को राहत मिलेगी।
7. नहीं बदल सकते हम अपना भेष, साधु नहीं बन सकते, पर इतना तो कर ही सकते हैं कि साधु के कमण्डलु को पकड़ कर उनके साथ चलने का सौभाग्य प्राप्त कर सकें।
8. जिस तरह मोबाइल की बैटरी ड्रेन हो जाती है, तो उसे फिर चार्जर से पूरा रिचार्ज करते हैं, ठीक इसी तरह अपने जीवन की ड्रेन हुई ऊर्जा को संत संगत से फिर पूरी तरह ऊर्जावान बनाइये, जिससे पूरे वर्ष आप पूर्णत: ऊर्जावान रहें।
9. एक कापी पेन रखिये और रोज एक अच्छा काम करके, उसमें लिखते जाइये, जैसे आज किसी व्यक्ति को खाना खिलाया, किसी घायल पक्षी को अस्पताल पहुंचाया, किसी बुजुर्ग को सड़क पार कराई, किसी जरूरतमंद बच्चे को कापी आदि दी, पक्षियों के लिये पानी की व्यवस्था की, आदि और इसी तरह कोई गलती होती है, उसे भी कापी में लिखिये। शुरूआत कीजिये, जीवन में परिवर्तन महसूस होगा।
10. हां, इस वर्षायोग में संकल्प कीजिये, चाहे 15 के हो या 50 के, बुजुर्गों के चरण स्पर्श करके ही दिन की शुरूआत करेंगे। बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद, हर दिन को मंगल कर देता है।
11. अगर आपके निकट के मंदिर में साधु संतों का वर्षायोग हो रहा है, तो अपने को बहुत सौभाग्यशाली मानिये, क्योंकि ऐसा सौभाग्य विरलों को ही मिलता है। ऐसे सौभाग्य को परम सौभाग्य में बदलिये, दर्शन कीजिये, चंद मिनट उनके पास जरूर बैठिये। प्रवचन सुन पाये तो बहुत बेहतर। इस वर्षायोग में ज्ञान गंगा में अपने को जरूर भिगो लीजिए।
12. वर्षायोग यानि पूरे वर्ष का योग, इन पांच महीनों से बनता है, इनमें कुछ जुड़ता है, शेष में तो खर्च ही होता है, इसलिये जितनी ज्ञान की बातें, ग्रहण कर सकें, उतना बेहतर।
13. संतों से सीखिये ईर्या समिति, जब भी चलें तो सामने देख कर चलें, कोई चींटी, जीव जंतु पैर के नीचे ना आये। वे भी जीना चाहते हैं, आपने जितना देखभाल से चलना शुरू किया, उतना ही कर्मों का कम आस्रव होगा। यह प्रकृति का सिद्धान्त है कि तुमने किसी की रक्षा की, अभय दान दिया, कल आपकी रक्षा करने कोई आएगा। जैसी करनी, वैसी भरनी। संतों ने एक घर छोड़ा, अनेक घर जुड़ गये। बार-बार खाना छोड़ा, उन्हें आहार देने वालों की कतार लग गई और जिनके हुआ, उनका सौभाग्य बन गया।
14. शास्त्र सभा, शंका समाधान, धार्मिक प्रश्नोत्तरी, स्वाध्याय, धर्मचर्चायें संगोष्ठी आदि अनेक रूपों में इस वर्षायोग का सदुपयोग करें, जीवन में परिवर्तन सही दिशा में होगा।
15. अपने आचरण को ऐसा संयत और सुंस्कृत बनायें, जिससे दूसरे को आप के कारण शारीरिक या मानसिक किसी भी तरह की पीड़ी ना पहुंचे।

ध्यान रहे, मन-वचन-काय की हलचल को शांत करने तथा अंतरात्मा को परमात्मा से नजदीक लाने के लिये है वर्षायोग। इस दौरान इच्छाओं को तप से कन्ट्रोल करो, पर तप सामर्थ्यानुसार करो, देखा देखी नहीं। वर्षा के दौरान तप करने से स्वास्थ्य में वृद्धि होती है और अंतरंग तप से मन की शुद्धि।
एक लाइन में कहें तो –
धर्म ध्यान में व्यस्त रहो, मस्त रहो, स्वस्थ रहो।