23वें तीर्थंकर के 2900वें जन्मकल्याणक पर 23 वर्षों बाद गुरु भाइयों का मिलन : सूरज ने मेघ ओढ़नी लपेटी, धरा ने किया वंदन

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09 जनवरी 2024 / पौष कृष्ण त्रयोदशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /

‘कहीं 100वीं-200वीं जयंती मनाते हैं तो सरकार शामिल होने पहुंच जाती है, पर आज पूरा देश पारस प्रभु का 2900वां और चंदाप्रभु का कितने करोड़वां-अरबवां जन्म-तप कल्याणक मना रहा है। पर आज हमारे नेतृत्व में, समाज में कहीं न कहीं कमी है, जो सरकार धोक लगाने नहीं आई,’ कहते हुए आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज ने मेरठ सदर दिगंबर जैन मंदिर में समाज के बिखराव पर सीधी चोट कर हकीकत से रूबरू किया।

07 जनवरी को चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनील सागरजी ससंघ मेरठ में हरिद्वार के लिये बढ़ते उन्हीं के गुरुभाई आचार्य श्री सौभाग्य सागरजी ससंघ को हाथ थामे सदर जैन मंदिर लाये, जहां संयुक्त रूप से धर्मसभा को सम्बोधित किया।

आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा –
सूरज छिपे हैं, बादल छाये हैं,
ऐसे में सौभाग्य चलकर हमारे द्वार आये हैं।

यह मेरठ बिछुड़ने और तोड़ने-फोड़ने की धरा मानी जाती है। यहीं पर पहुंचे श्रवण कुमार ने भी अपने अति प्रिय मां-बाप से कटु वचन बोले। पर आज यह सब झूठ हो गया, आज यहां संतों का मिलन इसका साक्षात गवाह बना।

मिलना तब होता है, जब अहम और वहम की चट्टानें टूटती हैं।
मिलना तब होता है, जब हृदय से वात्सल्य की धार छूटती है।

तपस्वी बने, त्यागी बने, सिंहासन का मोह त्यागे, क्योंकि जिस चट्टान पर बैठे, वहीं सिहांसन बन जाएगा। आज समय की मांग है – चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा के लिये आगे आयें. सामाजिक समरसता का भाव भी जरूरी है।

मरसलगंज गौरव आचार्य श्री सौभाग्य सागरजी ने कहा कि सौभाग्य से ही संतों का मिलन देखने को मिलता है, जैसा गुरुभाइयों में प्रेम है, वो अगर आप सब में आ जाये, तो राम राज्य 22 जनवरी को नहीं, इसी समय से आ जाएगा। चलते-फिरते तीर्थ के माध्यम से अपने जीवन को तो तीर्थ बनायें।

बस का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि चतुर्विध संघ भी एक बस है, जिसमें कंडक्टर भी हैं और ड्राइवर भी। तीर्थंकर ड्राइवर होते हैं, जो मोक्ष मंजिल पर ले जाते हैं और कंडक्टर, जो सबको बस में बैठाता है, वे गुरु हैं। इस तप-त्याग की सम्यकदर्शन रूट की बस में बैठकर तीर्थंकर रूपी ड्राइवर, आपको मोक्ष रूपी मंजिल तक पहुंचा देते हैं।

इससे पूर्व आचार्य श्री सुरत्न सागरजी ने कहा कि इस संत मिलन को देखकर जितनी आप सबको खुशी मिली है, उससे कहीं ज्यादा त्यागीवृंद को मिली है। 23 वर्षों बाद, परिवार एक साथ बैठा है और वह दिन है 23वें तीर्थंकर का जन्म-तप कल्याणक का। मेरठ वही स्थान है जहां गुरुवर तपस्वी सम्राट सन्मति सागरजी ने क्षुल्लक दीक्षा को अंगीकार किया। जैसे संत मिले हैं, ऐसे समाज एकजुट रहे, तभी जिनशसान जयवंत रहकर, उच्चता को प्राप्त करता रहेगा।

पूरे समाज ने आचार्य श्री सुनील सागरजी के सान्निध्य में पारस-चंदा प्रभु का जन्म-तप कल्याणक महामहोत्सव मनाया। शनिवार 06 जनवरी को 18 भाषाओं के ज्ञाता, पशु-पक्षी की भाषा जानने वाले आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी के 51वें समाधिदिवस पर विनयांजलि अर्पित की।

आचार्य श्री सुनील सागरजी के सान्निध्य में ‘जैन एक्शन यूथ’ ग्रुप की स्थापना कर मेरठ में मंदिर-घर-प्रतिष्ठानों में जैन ध्वजा लगाकर, तीर्थंकर पारस प्रभु के 2900वें जन्म कल्याणक के प्रति जागरूकता की।