05 जून 2025 / जयेष्ठ शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
जिन और जिनालय की सेवा करने का सौभाग्य विरले को ही मिलता है। सेवा का रूप होता है कमेटी, उसका कर्तव्य होता है कि उस जिनालय को जीवंत रखूं। हम तो चार -पांच साल, फिर अगले के हाथ में कमान, पर कुछ जगह उनके सेवा कार्यों को देखते हुए उन्हीं को दोबारा ले आती है, शायद हममें बुराई नहीं है।
1. कुर्सी सेवा के लिए या चिपकने के लिए, छोड़ेगें नही, मानो वसीयत में लिखा ली
चैनल महालक्ष्मी के पास समय-समय पर ऐसे विवादों की जानकारी आती रहती है, कोई ठेकेदार नहीं है समाज की चैनल महालक्ष्मी, पर इसकी सत्य, निष्ठा, समर्पण से यह खिंचाव आ ही जाता है, पर कुछ केसों में कमेटी हठी रहती है, समाज नहीं मानती, वहां दो फाड़ होते हैं, कहीं बात सरकारी महकमें तक पहुंच जाती है। इन सब की दोषी मुख्यत: कमेटी ही होती है और फसाद का कारण हिसाब, समाज की दान राशि। बाहर किए गए पाप या गलत कार्य, जिनालयों में धुलते हैं, पर जिनालयों के कहां धुलेंगे?
अब दिल्ली के जागृति एन्क्लेव जिनालय की कमेटी 20 साल से वही, पांच साल से उठ रही मांग, पर अब स्पष्ट कह दिया, यही पदाधिकारी थे, यही रहेंगे। मांग थी 20 साल से कोई एजीएम नहीं, आम सभा बुलाएं, पुनर्गठन हो, हिसाब पास हो। जवाब एक संरक्षक देते हैं- हम ही कमेटी, हम ही सदस्य, हम ही एजीएम, हम ही बोर्ड, तुम होते कौन? कोई भी सदस्य नहीं है। इस तरह की तानाशाही कमेटियां क्या समाज में स्वीकार्य होनी चाहिये?
2. चुनाव के नाम पर झगड़े कराओगे : कमेटी आरोप?
चुनाव से भागने के लिये कमेटी यही कहती है, यहां दो फाड़ करना चाहते हो, राजनीति करना चाहते हो, झगड़े कराना चाहते हो। जब ऐसी बातें, असभ्य भाषा में कमेटी करने लगे तो शालीन समाज हाथ जोड़ उठ लेता है। वही हुआ 15 मई 2025 को कमेटी की मीटिंग में। पर अगले ही क्षण दबंगई, मारपीट, गुंडागर्दी का तांडव, कमेटी के प्लान नं. टू की प्रीप्लान रणनीति देखने को मिली। यानि पहले शब्द – दबाव से, नहीं तो मार कुटाई से। वो तो समाज के लोगों की संख्या ज्यादा थी, वर्ना क्या हो जाता! कमेटी ने तो कहा था हम 10 होंगे, आप 5, पर पारस प्रभु की कृपा रही, सही रूप सामने आ गया, पोल खुल गई।
क्या ऐसे पदाधिकारी स्वीकार्य होने चाहिए?
3. जिनालय स्कूल बिल्डिंग में साधु नहीं ठहरा सकते! – कमेटी
जागृति एन्क्लेव जिनालय के साथ तथा अन्य समाज के भी कई लोगों ने मंदिर की स्कूल बिल्डिंग निर्माण में भरपूर सहयोग दिया। घर-घर जाकर जानकारी दी कि स्कूल के नाम होने से एक फ्लोर स्कूल को, दो फ्लोर संतों के प्रवास को व एक हाल प्रवचन के लिये होगा और शुरूआत भी हुई एक साथ 50 पिच्छी के संघ आचार्य श्री सुनील सागर जी के 45 दिन प्रवास के साथ। फिर मुनि श्री शिव सागर जी का प्रवास, पहले ऊपर फ्लोर पर, फिर नीचे कर दिया। तर्क स्कूली बच्चों के परिजनों को दिगंबर मुनिराजों को देखने पर ऐतराज है। अब समाज को भी कमेटी ने दो टूक शब्दों में कह दिया कि कानूनन यह स्कूल बिल्डिंग है, इसमें दिगंबर साधु ठहराकर कानून नहीं तोड़ सकते। नॉन जैन स्कूल चलेगा, फिजियो थेरेपी सेंटर सब कमाई के लिए चलेगा, पर दिगंबर साधु नहीं। इससे शर्मसार सोच और नहीं हो सकती। देश की हर – संस्था, अपने स्कूल, कॉलेज भवन के दरवाजे दिगंबर साधु के लिए खोल देती है, सहर्ष सेवा करते हैं।
इस कमेटी को दिगंबर साधु अपनी ही बिल्डिंग में प्रवेश नहीं कराना, दिगम्बर साधुओं को नहीं देखना, इससे ज्यादा शर्मसार किसी क्षेत्र की समाज के लिये नहीं हो सकता!
4. साधु दोपहर को बुलाते हैं, बार-बार बुलाते हैं, हमारे बस की नहीं : कमेटी
समाज कमेटी साधुओं को आमंत्रित करने का बार-बार निवेदन करता है। कुछ वर्षों से बार-बार लुभावने वायदे भी किये कि दो किमी के दायरे में कोई भी साधु आयेंगे, उनको हम श्रीफल चढ़ाने जरूर जाएंगे। तालियां पीटी गर्इं, पर रात गई बात गई। समाज के बार-बार अनुरोध पर यह जवाब देते हैं साधु दोपहर में बुलाते हैं, बार-बार बुलाते हैं, हम केवल एक-दो बार आपके साथ चल सकते हैं। उसके बाद अब बुलाना तो दूर, ठहरने पर ही नो एंट्री।
5. कैसी कमेटी, जो साधुओं के पास जाना भी नहीं चाहती
अभी हाल में आचार्य श्री विमर्श सागरजी, आचार्य श्री सौभाग्य सागर जी संघ से जागृति एन्क्लेव जिनालय आने के कई बार संदेश आए, पर कमेटी ने व्यवस्था न होने की बात कह कर इनकार कर दिया। आज इस तरह की कमेटियां पद से चिपकी हैं। कुर्सी नहीं छोड़ना चाहती। क्या कोई समाज बिना साधुओं के धर्म जागृति कर पाएगा। जिनालय तभी जिंदा कहलाते हैं, जहां साधुओं का आना-जाना निरंतर लगा रहता है। (जारी)