अब जब संतो ने देखा बद्रीनाथ में सुबह 3:00 बजे अभिषेक , तो क्या लगे वह, विष्णु जी या आदिनाथ जी

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09 मई2023 / जयेष्ठ कृष्णा चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/Exclusive/
कुछ दशक पहले आचार्य श्री विद्यानंद जी महामुनिराज ने बद्रीनाथ में दर्शन किए थे अभिषेक के और उसके बाद कई लोग वहा दर्शन करते आ रहे हैं। पर अभी तक रिकॉर्ड किए गए चित्रों से प्रमाणिकता , जनमानस में नहीं पहुंचती थी। अब चैनल महालक्ष्मी पहली बार बद्रीनाथ में उस मूर्ति के अभिषेक के चित्रों के साथ आपके बीच में वह प्रमाण रखने की प्रयास करेगा जिससे आप पहचान पाए कि बद्रीनाथ धाम में किन की प्रतिमा विराजित है ?

जैसा आप जानते ही हैं उत्तराखंड के चमोली में है चार धामों में से एक बद्रीनाथ धाम, वैदिक परम्परा से भगवान विष्णु का धाम। यह 11,204 फीट की ऊंचाई पर गढ़वाल पहाड़ियों पर स्थित है, जहां अलंकनंदा नदी बहती है। शहर नर और नारायण के बीच बसा है और ऋषिकेश से 301 किमी की दूरी पर, या कहें गौरी कुंड (केदारनाथ) से 233 किमी, दिल्ली से 525 किमी की दूरी पर है।

यही पर हैं आभूषणों से लगभग पूरी तरह ढकी अतिशयकारी मनोहर श्याम रंग की 3.3 फीट ऊंची प्रतिमा। यह जो मूर्ति बनी है , यह शालिग्राम पत्थर की बनी है । आपमें से कई वहां गये भी होंगे, वहां आचार्य श्री विद्यानंद जी मुनिराज भी दर्शन करने गये थे और एक बार में ही एकाग्रता से देखने के बाद, उनके मुख से निकला – यह तो आदिनाथ भगवान हैं। और उसके बाद यहां की सच्चाई जानने के लिये कुछ प्रयास शुरू हुये, पर किसी परिणाम पर पहुंचने से पहले ही वो सब बंद हो गया। पर इस बीच कई सवाल सामने उभरने लगे, जो आज जनहित में आपके सामने चिंतन के लिये पेश कर रहे हैं।

इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश कीजिए, आपके जहन में बद्रीनाथ के कपाट के अंदर बंद, आदिनाथ भगवान की छवि नजर आने लगेगी-

1 क्या वैदिक परम्परा में कहीं भी किसी भगवान की मूर्ति ध्यान मुद्रा में दिगम्बर रूप में है? अगर नहीं, तो यह किसकी प्रतिमा है? जिस मुद्रा में बद्रीनाथ के भगवान हैं, वह मुद्रा पूरे विश्व में केवल जैन तीर्थंकरों की होती है, जो केवल दो रूपों में ही पाई जाती है – पदमासन (ध्यान मुद्रा में बैठे हुए) या खड्गासन (ध्यान में दोनों हाथ नीचे कर खड़े हुए)।

2. वैदिक परम्परा में भगवान के साथ या तो कोई कम्पेनियन (पत्नी, भाई, शिष्य आदि) होते हैं और कभी अकेले मूर्ति होती है तो उनके हाथ में कोई न कोई अस्त्र या वस्तु जैसे डमरू, बांसुरी आदि होते हैं। इनके बिना दिगम्बर पदमासन रूप में क्या विश्व में आज तक कोई वैदिक प्रतिमा देखी है?
इन 2सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं, तो मन में एक ही जवाब आता है कि बद्रीनाथ के जब भी खुलते हैं कपाट, तो सामने विराजित दिखते आदिनाथ। हमारा उद्देश्य यह नहीं कि किसी का विरोध करें या प्रतिमा की पहचान को बदला जाये।

आज मंगलवार रात्रि 8:00 बजे के एपिसोड नंबर 18 53 में चैनल महालक्ष्मी आपको उन नवीनतम अभिषेक के चित्रों के साथ, वहां उस समय विराजमान रहे, आचार्य श्री निर्भय सागर जी तथा अन्य संतों व श्रावकों के द्वारा देखे गए, अपनी आंखों से अभिषेक के बाद, क्या लगा उन सब के प्रमाण देने का प्रयास करेगा। जानिए और पहचानिए आप भी कि वास्तव में बद्रीनाथ किनका तीर्थ रहा है और हम उनको किस नाम से जानते हैं? क्या वास्तव में यह तीर्थ कहीं बदला हुआ तो नहीं? सब कुछ अपने आंखों से जानिए और पहचानिए। देखिएगा मंगलवार रात्रि 8:00 बजे, 9 मई के इस विशेष एपिसोड में, चैनल महालक्ष्मी की ,एक और एक्सक्लूसिव प्रस्तुति

सिर्फ यही अनुरोध कि सही इतिहास को उजागर किया जाना चाहिए। किसी भी देश का सही प्रकट किया किया गया इतिहास, उस देश की प्राचीन संस्कृति व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और विश्व में अलग पहचान बनती है।हमारा यह अनुरोध है कि अगर यह प्रमाण स्पष्ट करते हैं कि प्रतिमा प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ जी की है तो यहां एक शिलालेख पर यह जानकारी स्पष्ट रूप से लिखी जानी चाहिए, जैसे कुतुबमीनार के पास लिखा है कि यह 27 जैन-हिन्दू मंदिर तोड़कर बनाया गया है।

क्योंकि अगर अयोध्या के बाद कानून की सीमाओं में, काशी के अंदर, मथुरा के अंदर, मस्जिदों की निष्पक्ष जांच हो सकती है , तो फिर उत्तर में बद्रीनाथ , दक्षिण में तिरुपति बालाजी, पश्चिम में महालक्ष्मी , पूर्व में अदीना मस्जिद यानी चारों दिशाओं में लगभग 50 से ज्यादा धार्मिक स्थलों की भी, जैन समाज विनम्र होकर अनुरोध करेगा कि उनके इतिहास को भी सामने लाया जाना चाहिए। हमारा अनुरोध केवल इतिहास को सही रूप से दर्शाने के लिए , उचित जांच का है ।#Truth_of_Badrinath #Badrinath #Char-Dham #Adinath #Rishabnath #Lord_Vishnu #Chamoli #Uttarakhand #Save_Temples Jains_in Badrinath Badrinath_real_story #Rishabnath_in_Badrinath #RECLAIM_TEMPLES #decisions_according_Constitution #PlacesOfWorshipAct 91