105 वर्ष की साध्वी नहीं ली आज तक कभी दवा , 21वर्षों से निरंतर 13घंटे प्रतिदिन मौन, 84 वर्षों तक पैदल विहार, 105 वर्ष में भी पूरी सक्रियता और जागरूकता

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23 अक्टूबर 2022/ कार्तिक कृष्णा त्रियोदिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

6 दिनों तक इन्हें ना पेशाब आया और न ही शौच लगी, हालात गंभीर, संकल्प बल से स्वस्थ

आजकल के युग में जहां एक ओर आदमी का जन्म भी अस्पताल में होता है और मृत्यु भी अस्पताल में होती है। ऐसे में आदमी वर्तमान युग में मां के पेट से लेकर मौत से पहले तक दवाइयों के सेवन से अछूता नहीं रहता है वहीं जैन तेरापंथ समाज की एक ऐसी साध्वी भी है जिसने आज तक ना कोई दवाई ली है और ना ही किसी डॉक्टर या वैद्य को दिखाया है। ऐसी साध्वी का नाम है आचार्य महाश्रमण की विदुषी शिष्या साध्वी बिदामां।

विक्रम संवत 1975 में जन्मी साध्वी बिदामां ने इस महीने में अपने जीवन के 105 वें वर्ष में प्रवेश किया है जो आज के युग में एक बड़े आश्चर्य की बात है क्योंकि वर्तमान में व्यक्ति की औसत आयु 70 वर्ष लगभग है। इसके साथ ही साध्वी बिदामां को संयम धारण किए हुए 81वर्ष पूरे हो गए है जो किसी व्यक्ति द्वारा इतने वर्षों तक साधुत्व युक्त जीवन जीना बहुत बड़ी बात है। जैन तेरापंथ समाज में अब तक के इतिहास की यह सबसे अधिक उम्र वाली साध्वी है। तेरापंथ समाज के साधु-साध्वियों में इतना आयुष्य किसी ने वर्तमान तक नहीं लिया है। इसके साथ ही साध्वी बिदामां जैन तेरापंथ समाज की सबसे अधिक संयम पर्याय वाली साध्वी भी है जो एक आत्मिक गौरव का विषय है।

आहार संयम, साधना और प्रसन्नता से युक्त जीवन :
वर्तमान की युवा पीढ़ी के लिए साध्वी बिदामां एक आदर्श और प्रेरक प्रतिमूर्ति है जिसने इतना आयुष्य प्राप्त किया है और वह भी बिना दवाई। साध्वी अपने दैनिक जीवन में मात्र 7द्रव्य का उपभोग ही करती है और हैरानी की बात है कि पिछले 16वर्षों से सुबह के नाश्ते में सिर्फ दूध का सेवन करती है। दोपहर को एक रोटी और शाम को सूर्यास्त से पूर्व एक कटोरी खिचड़ी। इसके साथ साध्वी 21वर्षों से निरंतर 13घंटे का प्रतिदिन मौन रखती है और इन्होंने हजारों उपवास अपने जीवन में किए है और तपस्याओं की लंबी श्रृंखला इनके आत्मिक व्यक्तित्व को और ज्यादा आकर्षित करती है। साध्वी उज्जवल रेखा कहती है कि इनके चेहरे पर सदैव प्रसन्नता और तेज दिखाई देता है जो हमारी थकान भी मिटा देता है।

संकल्प बल से जीवन को दी नई दिशा, दिव्य शक्ति का आभास
साध्वी बिदामां का 13 वर्ष की अल्पायु में ही विवाह हो गया था। शादी के 6महीने बाद पति की मौत हो गई। साध्वी बनने के बाद विस 1999 में मारवाड़ जंक्शन में साध्वी व्याधि ग्रस्त हो गई। इस दौरान 6 दिनों तक इन्हें ना पेशाब आया और न ही शौच लगी। हालात गंभीर होते जा रहे थे। उसके बाद संकल्प बल से साध्वी का शरीर स्वस्थ भी हुआ और इसके साथ ही आजीवन एलोपैथी सहित दवाइयों का त्याग भी कर दिया। अपने संकल्प को आप अभी तक निभा रही है जो सबके लिए प्रेरणादायी है।
कालू बना श्रद्धा का केंद्र : साध्वी बिदामां अभी कालू ग्राम में प्रवासरत है। कालू में माँ कालका का चमत्कारी मंदिर है जिसके दर्शन करने देशभर से भक्तगण आते है। ऐसे में एक ओर मां कालका है तो दूसरी और संयम साधिका साध्वी बिदामां है। कालू की ये दोनों विभूतियां वर्तमान में जनमानस के लिए श्रद्धा, आस्था और भक्ति का केंद्र है।
सहवर्ती साध्वियां सेवा कर धन्यता का कर रही अनुभव : जैन तेरापंथ में सेवा को बड़ा उपक्रम बताया गया है। इस संघ के आचार्य महाश्रमण अपने प्रवचनों द्वारा साधु-साध्वी समाज सहित श्रावकों को भी सेवा धर्म को सबसे बड़ा धर्म बताते है। साध्वी बिदामां कालू ग्राम में साध्वी उज्जवल रेखा के साथ है। इस ग्रुप में साध्वी उज्जवल रेखा के साथ इनकी सहवर्ती साध्वियां अमृतप्रभा, स्मितप्रभा, हेमप्रभा और नम्र प्रभा इतनी वयोवृद्ध साध्वी की सेवा बड़े मनोभाव से करती है और खुद को धन्य-धन्य मानती है। तेरापंथ में सेवा को सबसे बड़ा कार्य बताया गया है जिसकी अनुपालना साध्वी उज्जवल रेखा के नेतृत्व में सहवर्ती साध्वियां बखूबी निभा रही है।

उम्र के 105 वर्ष वें पड़ाव में पूरी सक्रियता और जागरूकता
साध्वी बिदामां अपने जीवन के 105वर्ष में प्रवेश कर चुकी है परंतु ये इनके लिए सिर्फ एक संख्या मात्र है क्योंकि आज भी उम्र के इस पड़ाव पर यह साध्वी दिन अपनी दैनिक दिनचर्या के अधिकतर कार्य खुद करती है और आने वाले श्रद्धालुओं को मंगलपाठ भी सुनाती है। इसके साथ ही साध्वी अपने साध्वाचार के प्रति पूर्ण जागरूक है। अपने साध्वी जीवन के आवश्यक आध्यात्मिक कार्य पूरी निष्ठा से संपादित करती है।जीवन जीना और शतायु होना कोई महत्व नहीं रखता लेकिन स्वावलंबिता और पुरूषार्थ के साथ जीना महत्व रखता है और ऐसा ही जीवन शासन श्री बिदामां जी का है। उन्होंने कहा कि बिदामां ने 84 वर्षों तक स्वयं को पैदल यात्री बनाये रखा तथा 98 वर्ष की आयु तक साधन का प्रयोग करके सहयोगी साध्वियों के सहयोग ने ग्रामानुग्राम विचरण होता रहा, अब इस कालू की धरती पर इनका सौवा वर्ष पूर्ण हो गया है और एक सौ वें वर्ष में प्रवेश हो गया है।

इन्होंने 100 वर्ष के जीवनकाल में किसी भी प्रकार की औषधि का कभी भी सेवन नहीं किया। जिन्होंने अपने आत्मबल, मनोबल और तपोबल को अखण्ड बनाए रखा। ऐसी शतायु साध्वी बिदामां ने एक नया कीर्तिमान स्थापित कर अपने आप का धन्य बना लिया। साध्वी अमृतप्रभा जी ने बताया कि साध्वी बिदामां ने किस प्रकार अत्यधिक शारीरिक अस्वस्थता होने की स्थिति में भी मनोयोग से उस पर नियन्त्रण किया।