दान करने से भण्डार अक्षय और अनन्त हो जाते हैं ,मात्र धन और अन्न का दान ही दान नहीं, औषध और ज्ञान दान तो सर्वोत्तम है ही, लेकिन श्रमदान भी बहुत बड़ा दान है- आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी

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17 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ नरेंद्र अजमेरा पियुष कासलीवाल
भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का विहार महाराष्ट्र के ऊदगाव की ओर चल रहा है विहार के दौरान भक्त को कहाँ की

विवेकशील प्राणी होने के नाते मनुष्य के अन्दर त्याग की भावना ज्यादा होती है। मनुष्य का सम्पूर्ण विकास त्याग के बिना सम्भव भी नहीं है। जो जितना अधिक त्याग करता है वो उतना ही महान समझा जाता है।

धन का दान करने से धन शुद्ध होता है और क्रोध, मान, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार और विकारी भावों का त्याग करने से आत्मा शुद्ध होती है। दान करने से भण्डार अक्षय और अनन्त हो जाते हैं मात्र धन और अन्न का दान ही दान नहीं है। औषध और ज्ञान दान तो सर्वोत्तम है ही, लेकिन श्रमदान भी बहुत बड़ा दान है। किसी अच्छे कार्य में सहयोगी बनना श्रमदान है। किसी अभावग्रस्त सहधर्मी को शरीर, मन, बुद्धि, धन और शुभ भावों से सहयोग करना परोपकार है। परोपकार करने वाले किसी व्यक्ति में अहंकार का भाव नहीं आना चाहिए। क्योंकि परोपकार ही स्वयं पर उपकार बनकर आता है।

अल्हादित प्रमुदित और खुश होकर दान देने से चित्त शुद्ध होता है, हृदय निर्मल होता है, पापों का प्रायश्चित होता है और भावों में विशुद्धि आती है। तभी दान और त्याग का फल जीवन में फलित होता है…!