30 अप्रैल 2025 / बैसाख शुक्ल तृतीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
सपने तो एक माह पहले ख्यालों में बन चुके थे। इंदौर के सुमति धाम में दिल्ली से जायेंगे, वहां हजारों के बीच तीर्थक्षेत्रों की सुरक्षा के लिए प्रभावना करेंगे, बहुत कुछ ऐसी ही योजना थी। पर अचानक तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन जी और 125 वर्ष की कमेटी के अध्यक्ष जवाहरलालजी का स्वास्थ्य ढीला हो गया।
पर जाना तो होगा ही, मन सबका कर रहा था, पर शरीर साथ नहीं दे रहा था। आखिर मन ने, शरीर पर बाजी मार ली और 28 की सुबह जम्बू प्रसाद जैन जी, आशीष जैन जी के साथ चैनल महालक्ष्मी उड़ चले इन्दौर। 27 के चित्र देखे थे सुमति धाम के, सारे सपने धाराशयी हो रहे थे। वहां पर इतनी भीड़ और संतों से चर्चा तो दूर, दर्शन भी सौ-डेढ़ सौ फुट से हो जाये, तो सौभाग्य समझना।
हवाई अड्डे पर उतरकर 10-15 मिनट में सुमतिधाम पहुंचे। पंजीकरण हंसमुख गांधी जी ने करवा दिया था। बिना पंजीकरण प्रवेश नहीं, दो बार चेकिंग। एक बारगी तो लगा कि हम एयरपोर्ट पर ही तो नहीं खड़े। सूरज की तपन परीक्षा ले रही थी।
सभी संत आहार चर्या में जा चुके थे। पता चला अब तीन बजे मंच पर जायेंगे, तभी दर्शन होंगे। पर क्या इसी तरह शाम हो जाएगी, क्योंकि साढ़े 6 बजे तक दिल्ली वापसी के लिए निकलना भी था।
चारों तरफ भीड़, एक धर्ममय मेला, व्यवस्थायें बहुत सुंदर। पहले भोजन या दर्शन। मन, आज शरीर से आगे चल रहा था, पहले दर्शन और अगर दर्शन नहीं, तो फिर उपवास। वैसे गला पूरी तरह सूख रहा था। बहुत लोगों का साथ मिला। कोई ब्रह्मचारी भैया कहते दर्शन कर लो, कोई कहे पहले भोजन। इस कार्यक्रम में मनोज बंगेला जी ने, वात्सल्य भैया ने, मानो ठान लिया कि आपको दर्शन करायेंगे जरूर। मन के अंधेरे में दूर एक जैसे दीपक जल गया। सुरक्षा का कवच पूरा सख्त, काले कपड़े में, कोई प्रवेश नहीं कर सकता। क्या मिल पायेंगे दर्शन?
संतों का आना शुरू हो गया था। सामने दो तख्त थे, पीछे सिंहासन था, एक पाटा था दायीं तरफ सीढ़ियां ऊपर कमरे को जा रही थी। आचार्य श्री कहां जायेंगे, ये किसी को पता नहीं, हाथ में पत्र तीर्थक्षेत्र कमेटी का, कोई हटाता, कोई जयजिनेन्द्र करते। धक्के बढ़ गये अचानक। स्पष्ट था कि गुरुवर का आगमन हो रहा है। फिर क्या था। चारों तरफ से कवर किये थे, पर हर धक्के के झोके से चंद कदम पीछे हो जाते। पर दोनों के सहयोग से गुरुवर की आंखों ने हमें देख लिया। बस इस दृश्य को देख रही आंखें नम हो गई। आचार्य श्री न सिंहासन पर बैठे, न ही पाटे पर, ना ही ऊपर कमरे की तरफ बढ़े। वे तख्त पर बैठे और जैसे ही उन्होंने देखा हम आगे बढ़े। कई मुनिराजों ने हाथ का घेरा बनाकर रोक दिया। किसी भी भक्त को यहां नहीं, कुछ आवाजें आ रही थी, ये महालक्ष्मी वाले। हर कोई अलग-अलग बोल रहा था। तभी आचार्य श्री ने हाथ उठाया। फिर सब हाथ, सब रुकावटें हट गई। हर कोई जैसे किम कर्तव्य विमूढ़ से हो गये थे।
आचार्य श्री ने 7-8 मिनट चर्चा की। तीर्थक्षेत्र कमेटी का हमने पत्र दिया। आचार्य श्री ने पूरा पढ़ा। हमारा स्पष्ट कहना था कि अब चल-अचल तीर्थों की सुरक्षा के लिये समाज को जागरूक करने के लिये आपका पूरा सहयोग चाहिये। सिर पर हाथ उठा आशीर्वाद का। कुछ घटनाओं पर भी चर्चा हुई, फिर उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के बाद मिलना।
हम तो धन्य हो गये। फिर गणाचार्य पुष्पदंत सागरजी के दर्शन किये, वे सामायिक में थे। आचार्य श्री प्रज्ञा सागरजी, आचार्य श्री विभव सागरजी, आचार्य श्री विनम्र सागरजी, आचार्य श्री सुन्दर सागरजी, आचार्य श्री विहर्ष सागरजी, उपाध्याय श्री विषोक सागरजी विरंजन सागरजी, विहसंत सागरजी, आदित्य सागरजी, अनेक से तीर्थों के बारे में चर्चा का सौभाग्य मिला। ये वो क्षण थे, जो कभी जीवन में भूल नहीं सकते।
तपती धरा पर संतों के साथ मण्डप में पहुंचे, तब वहां का दृश्य अद्वितीय था। पूरी तरह भरा हुआ। तेज लाइट और चेहरे पहचानना असंभव था। तब भी मुनि श्री आदित्य सागरजी ने अपन उद्बोधन में हजारों की भीड़ में मानो पहचानते हुए कह दिया, वो चैनल महालक्ष्मी के बैठे हैं, मैं उनकी टोपी से पहचाननने की कोशिश कर रहा हूं।
और फिर गुरुवर को श्रीफल भेंट करने के लिये तीर्थक्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष जम्बू प्रसाद जैन, अशोक दोषी जी, संजय पापड़ीवाल, जमनालाल हपावत, संतोष घड़ी, हंसमुख गांधी, पारस लोहाड़े के साथ श्रीफल समर्पित करने का सुअवसर मिला, तब स्टेज से देखा कि तेज रोशनी में दूर तक सिर्फ सिर ही सिर नजर आ रहे थे, किसो को पहचानना असंभव था। चंद क्षण स्टेज पर ही चर्चा का मौका मिला।
एक साथ 388 संतों के दर्शन कर, जीवन के उस क्षणों को संजोया, जो शायद कभी भूले नहीं जायेंगे। अनेक संतों के चेहरे पहचाने जा रहे थे। जीवन के सारे पुण्य मानो एक जगह संचित होकर, यह अवसर मिला था।
आचार्य श्री ने तीर्थसुरक्षा के प्रति समाज को अपने संबोधन में जागरूक किया। फिर समापन के बाद हमारा हाथ पकड़ कर जब वो आगे बढ़ते गये, तो हमारी आंखें फिर नम हो गई। ये गुरु का अनकहा, आशीष जो जीवन भर हमें दिशाबोध कराता रहेगा। रास्ते में चर्चा, फिर वह एक लम्बा दौर 15 मिनट का चला, साथ ही जम्बू प्रसाद जी के साथ तीनों की तीर्थों के प्रति, 125 वर्ष के कार्यक्रमों पर चर्चा हुई। फिरअन्य संतों से भी। आशा से ज्यादा मिला, बहुत ज्यादा मिला। यह एक शुरूआत आने वाले सुनहरे कल के लिये। यह वादा था कि अब लगभग हर माह गुरुवर के श्रीचरणों में बैठकर तीर्थों की सुरक्षा की योजनाओं पर चर्चा करेंगे।
आचार्य श्री ने चरण छूकर यही कहा – गुरुवर, छोटे मुंह बड़ी बात कहूंगा, कि यह पट्टाचार्य उत्सव नहीं, पूरी जैन संस्कृति, जैन धर्म का महोत्सव है, अब इन्हीं कंधों पर पूरे समाज को शिखर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। पूरा समाज आपके चरणों में इसी आशा से पलके बिछाये बैठा है। समाज के बीच की कुरीतियों को विवादों को, विरोधों को आप खत्म कर देंगे, यह आशा नहीं पूर्ण विश्वास है। गुरुवर का हाथ कुछ समय तक हमारे सिर पर मानो ठहर गया और उसका अहसास अब भी महसूस कर रहे हैं।
उधर आचार्य श्री मुस्कराकर बढ़ गये, चंद पल देखते रहे, और वो पल अब भी कैमरे रूपी आंकों के सामने हैं।