मना कर दो, महावीर जयंती नहीं मनायेंगे, … क्यों भाई? ॰ शुभकामनाओं में नहीं फर्क कर पाते महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध में …।

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7 अप्रैल 2025 / चैत्र शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार, खैर उनको तो छोड़िये, पहले अपने गिरबान में झांकियें, क्या हम कल्याणक और जयंती में अंतर समझते हैं? तीर्थंकर और भगवान में फर्क जानते हैं? बस, अगर ये दो ही जान लिये होते, तो शायद वो गल्ती नहीं करते, जिसका ठीकरा आज दूसरों पर फोड़ते हैं।

तीर्थंकर और भगवान क्या एक नहीं?
अगर भगवान और तीर्थंकर पर्यायवाची शब्द नहीं, तो क्या अंतर, तीर्थंकर को भगवान से अलग करता है, पहले ये जानते हैं। संसार से पार लगाने वाले, मोक्ष मार्ग को तीर्थ कहते हैं और जो इस तीर्थ को चलाते हैं, वो तीर्थंकर कहलाते हैं। यह एक सामान्य परिभाषा है। ये वीतरागी-हितोपदेशी होते हैं, पर इनमें कुछ खास विशेषता होती हैं, जैसे-
॰ तीर्थंकर अनंत बल के स्वामी, जिनके पांच कल्याणक – गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान तथा मोक्ष और जिन्हें मनाने स्वर्ग से देवता भी इस धरा पर आते हैं। तीर्थंकर हर काल में 24 ही होते हैं। हर भरत व ऐरावत क्षेत्र में यानि एक काल में पांच भरत व पांच ऐरावत क्षेत्र में 240, वैसे विदेह क्षेत्र में हर समय 20 तीर्थंकर सीमंधर आदि सदा विद्यमान रहते हैं। जैसे श्रवणबेलगोल के भट्टारक जी का मूल नाम नहीं होता, वो चारूकीर्ति ही कहलाते हैं, ऐसे ही विदेह क्षेत्र में सदा उनके वो ही नाम रहते हैं। हां, अब यह कह सकते हैं, कि हर तीर्थंकर भगवान तो होते हैं, पर हर भगवान तीर्थंकर नहीं होता। आज की भाषा में समझें, तो जैसे प्रधानमंत्री सांसद तो होता है, पर हर सांसद प्रधानमंत्री नहीं होता। बाहुबलि, भरत, राम, हनुमान, सुग्रीव आदि भगवान तो हैं, पर तीर्थंकर नहीं।

भगवान के समोशरण नहीं रचता कुबेर, उनकी दिव्य ध्वनि नहीं खिरती, उनके पंच कल्याणक भी नहीं होते, अब तो समझ आ गया होगा, अंतर तीर्थंकर और भगवान में। अब बात करते हैं कल्याणक की।

अंतर जन्म कल्याणक और जयंती / जन्मोत्सव में

आज अजैन भाई तो क्या जैन भी बहुत बड़ी संख्या में किसी भी तीर्थंकर के जन्म कल्याणक को जयंती कह देते हैं, जैसे, महावीर जयंती, आदिनाथ जयंती, पारसनाथ जयंती आदि, कुछ तो महावीर जन्मोत्सव आदि तक कहते हैं। क्या ये तीनों एक ही हैं? आगे बढ़ने से पहले सान्ध्य महालक्ष्मी इस पर प्रकाश डालने का प्रयास करेगा।

जन्मोत्सव किसका – जो वर्तमान में जीवित है, वो साधारण पुरुष भी हो सकता है और महापुरुष भी, जैसे घर में आप अपना, पिताजी का, बेटे का आदि मनाते होंगे। महापुरुषों की मृत्यु के बाद जन्म तिथि को जयंती कहते हैं, जैसे महात्मा गांधी जयंती, परशुराम जयंती, हनुमान जयंती, गुरुनानक जयंती। यह जयंती किसी राजनीतिज्ञ, सामाजिक व्यक्ति से लेकर महापुरुष की जन्मतिथि हो सकती है। कुछ लोग हनुमान जयंती न कहकर, हनुमान जन्मोत्सव भी कहते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि हनुमान चिरंजीवी हैं। खैर, अब जन्म कल्याणक की बात करते हैं।

जन्म कल्याणक – हां, चैनल महालक्ष्मी ने शीर्षक लिखा कि ‘मना कर दो – ‘महावीर जयंती नहीं मनायेंगे’। इसका कुछ आशय तो अब समझ ही गये होंगे आप। पर जयंती नहीं, तो क्या मनायें, इस पर शीर्षक में चुप्पी रख ली, कुछ सस्पेंस के लिये, आपको अच्छी तरह समझ आये इसलिये।

हां, कल्याणक हर तीर्थंकर के होते हैं, और जिन्हें मनाने देवता भी धरा पर आते हैं। विश्वास नहीं होता, पर यह सच है। और जन्म के समय सौधर्म इन्द्र खुद अपनी शचि के साथ आता है धरा पर और तीर्थंकर बालक को ले जाता है सुमेरु पर, उनके नहवन के लिये, जिसे जन्माभिषेक कहते हैं।
इसलिये ध्यान रखें, तीर्थंकरों की जयंती नहीं, जन्म कल्याणक मनाते हैं, इसीलिये तो कहा कि हम महावीर जयंती नहीं, जन्म कल्याणक मनायेंगे।

फर्क है महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध में
अफसोस तो इस बात का है कि जैन, अजैन और सरकार भी अनेक बार महावीर स्वामी जन्म कल्याणक की शुभकामनाएं देते समय महावीर स्वामी की जगह गौतम बुद्ध की तस्वीर लगा देते हैं, कुछ यहां दिखा रहे हैं:-
गौतम बुद्ध का दायां हाथ ऊपर होता है, वस्त्र पहने होते हैं, वहीं महावीर स्वामी के दोनों हाथ एक-दूसरे पर ध्यान मुद्रा में होते हैं, दिगंबर स्वरूप होता है। समझ गये ना आप!
आज सान्ध्य महालक्ष्मी ऐसी पांच भिन्नतायें आपके सामने रख रहा है, जिससे महावीर स्वामी की अलग पहचान दिखती है:-

1. महावीर स्वामी पदमासन मुद्रा में बायें हाथ के ऊपर दायां हाथ रखकर ध्यान मग्न (आशीर्वाद अवस्था में कभी नहीं)
तीर्थंकर महावीर स्वामी की तस्वीर / मूर्ति आपको केवल दो रूप में मिलती है – पदमासन (बैठे हुए) या खड्गासन (खड़े हुए) दोनों ही मुद्रायें ध्यान रूप में होती हैं। बैठी अवस्था में, सदा बायें हाथ के ऊपर दायां हाथ होगा। कभी आशीर्वाद रूप में या बैठी मुद्रा में हाथ छाती के आगे या उठे हुये, या पीछे, किसी अन्य रूप में नहीं होते।

2. महावीर स्वामी का स्वरूप केवल पूर्ण दिगंबर होता है

जी हां, यह सबसे बड़ी पहचान है, तीर्थंकर सभी दिगंबर रूप में होते हैं, जबकि शेष सभी धर्मों में भगवान कपड़ों में होते हैं, चाहे लंगोट पहने हो, खाल ओढ़े हों, गमछा हो, शाल हो, या आभूषण हो या हाथ में कोई वस्तु, पुष्प या हथियार हो। तीर्थंकर के तन पर कोई धागा तक नहीं होता और बैठी मुद्रा में, बायें हाथ के ऊपर दाया हाथ। बुद्ध की दिगम्बर रूप में कोई फोटो नहीं दिखते। वैसे उन्होंने पहले दिगंबर रूप ही अपनाया था, पर बाद में कठिन जानकर मध्यम मार्ग अपना लिया।

3. छाती पर होता है श्रीवत्स का निशान
काफी प्राचीन प्रतिमाओं को छोड़ दें, तो महावीर स्वामी का छाती के बीच में श्रीवत्स का निशान बना होता है। बुद्ध फोटो में ऐसा कोई निशान नहीं, होता। दक्षिण भारत की प्रतिमाओं में यह निशान कंधे के पास होता है।

4. पैरों के नीचे सिंह का निशान
पिछले हजार वर्षों में किसी भी तीर्थंकर की प्रतिमाओं में उनकी पहचान का चिह्न (दक्षिण में लांछन कहते हैं) बना होता है, जैसे महावीर स्वामी की प्रतिमा में सिंह का। बुद्ध की किसी तस्वीर में ऐसा चिह्न किसी भी प्रकार का नहीं होता।

5. सदा नासा दृष्टि,अधखुले नेत्र
महावीर स्वामी ध्यान मुद्रा में दृष्टि नीचे नाक की ओर होती है, जिसे नासा दृष्टि भी कहते हैं। हां, कुछ मूर्तिकारों ने कहीं-कहीं, पूरी खुली आंखें भी बनाई दिखती हैं, पर फोटो में स्वीकार्य मुद्रा नासा दृष्टि ही होती है।
उपरोक्त मुख्य 5 अंतर हैं, जिनको जानकर आप तुरंत बता सकते हैं कि यह फोटो महावीर स्वामी की है या नहीं। यह जानकारी आप अपने अजैन मित्रों में भी बांटिये।

चैनल महालक्ष्मी चिंतन : जब भी कहें या लिखें जन्म कल्याणक लिखें, सभी तीर्थंकरों के लिये। शुभकामना संदेश में सही फोटो लगायें। कोई गलती कर रहा हो, तो उसे बताये, यही इस दिशा में पहला सही कदम होगा।