दिगम्बराचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के द्वारा रचित “भारतीय” कविता-हम भारतीय इतनी ही पहचान रहे

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अहो हंसात्मन् !!
देश राष्ट्र में, अखण्डता का, सूत्रपात करो।
परस्पर में प्रेम स्नेह वात्सल्यता की गंगा बहाओ।
ईर्ष्या डाह की ज्वाला मत जलाओ।
मानव को मानवता ही सिखलाओ।
मानव को दानवता नहीं सिखाओ।
परस्पर में जीव जीव का उपकार करें।
नहीं कोई किसी का संहार करे।
दया करुणा अहिंसा का आश्रय ले।
मानवता का जयनाद करे,
साम्प्रदयिकता का नाम लेकर राष्ट्रीय एकता का न अपमान करें।
हम भारतीय इतनी ही पहचान रहे।।
!! जो है सो है…!!