॰ 16 हजार एकड़ के लिये बस 25 गार्ड क्यों, संख्या बढ़ाओ
॰ 2019 अधिसूचना, 2023 के ओएम, कार्यालय ज्ञापन का हो पूरा पालन
॰ हाइकोर्ट का 02 मई को अंतरिम आदेश, 21 जुलाई को सब देंगे अपडेट रिपोर्ट
07 मई 2025 / बैसाख शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /
झारखण्ड हाइकोर्ट ने शुक्रवार 02 मई को जैनों के अनादि निधन तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी पर पारसनाथ पहाड़ी की पवित्रता की सुरक्षा की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुये कई एतिहासिक निर्णय दिये।
हाइकोर्ट के मुख्य न्यायधीश एमएस रामचन्द्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पीठ ने राज्य से केन्द्र सरकार की अधिसूचना और कार्यालय ज्ञाप को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिये, जिसमें शराब और अन्य नशीले पदार्थ को बिक्री या सेवन, मांसाहारी भोजन परोसने और विशेषकर पवित्र पहाड़ पर पशुओं के साथ हानिकारक कृत्य पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया गया था। साथ ही अदालत ने पुलिस अधीक्षक (गिरिडीह) को प्रतिबंध के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए पवित्र पहाड़ पर होमगार्ड की संख्या बढ़ाने का भी आदेश दिया। अदालत का स्पष्ट संकेत था कि जैन समाज के लिये पारनाथ पहाड़ी अत्याधिक, धार्मिक महत्व रखती है।
जनहित याचिका ज्योत नामक धार्मिक ट्रस्ट द्वारा दायर की गई थी, जो अहमदाबाद (गुजरात) में स्थित है और जैनाचार्य युगभूषण सूरि द्वारा संचालित है। संस्था के लिये वरिष्ठ वकील डेरियस खंबाटा और पर्सीवल बिलिमोरिया ने मजबूती से पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि पारसनाथ पहाड़ी जैन धर्म का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग के साथ पूज्य के सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण स्थलों में से एक है।
उन्होंने अदालत से कहा – पारसनाथ जैन धर्म के लिये वैसा ही है, जैसा हिंदुओं के लिये अयोध्या-रामजन्मभूमि, बौद्धों के लिए बोधगया, सिखों के लिए स्वर्ण मंदिर, मुसलमानों के लिए मक्का और कैथोलिक ईसाइयों के लिए वेटिकन है और अनादिकाल से जैन धर्म को मानने वाले लोग पूरे पारसनाथ पहाड़ी क्षेत्र को पूजा के सबसे पवित्र स्थल के रूप में पूजते आ रहे हैं।
राज्य सरकार की दलील काम नहीं आई
पिछले माह इसी मामले की सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने कहा था कि पारसनाथ पहाड़ी संथाल आदिवासियों के पहाड़ी देवता मरांग बुरु की पूजा के लिए भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस जनहित याचिका की आड़ में जैन समुदाय पहाड़ी पर आदिवासियों के धार्मिक अधिकारों और प्रथाओं के प्रयोग में हस्तक्षेप करने का प्रयास कर रहा है। उनके, इस तर्क में अदालत को कोई दम नजर नहीं आया। अदालत ने कहा, हमें उक्त तर्क में कोई दम नहीं लगता, क्योंकि याचिकाकर्ता (ज्योत) ने संथाल आदिवासियों की धार्मिक प्रथाओं के बारे में कहीं भी आपत्ति नहीं जताई है। इसके विपरीत, याचिकाकर्ता के विद्वान वरिष्ठ वकील ने आश्वासन दिया कि जैन समुदाय का ऐसा कोई इरादा नहीं है और वे आदिवासियों की धार्मिक प्रथाओं का पूरा सम्मान करेंगे, जो अपन ेदेवता की पूजा करने के लिए पारसनाथ पहाड़ी पर आते हैं।
कुछ धार्मिक प्रथायें – परम्परायें रोकी जाती हैं
अदालत ने कहा कि धार्मिक महत्व वाले स्थानों पर कुछ प्रथाओं और गतिविधियों पर प्रतिबंध कोई नई घटना नहीं है। अदालत ने कहा कि इस तरह के प्रतिबंधों को कई मामलों में न्यायालयों ने बरकरार रखा है।
अदालत ने ये भी कहा कि केन्द्र सरकार के कार्यालय ज्ञापन के मद्देनजर राज्य सरकार इस पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा नहीं दे सकती है और न ही खनन गतिविधियों की अनुमति दे सकती है।
हर प्रकार की पर्यटन गतिविधि पर रोक
अदालत ने कहा जब 2023 के कार्यालय ज्ञापन में पर्यटन और पारिस्थिति की पर्यटन, दोनों गतिविधियों पर रोक लगा दी गई है, तो हम यह समझने में विफल हैं कि राज्य सरकार इसके विपरीत कैसे कार्य कर सकती है और 22-02-2019 की अधिसूचना के आधार पर पारसनाथ पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में मानना जारी रख सकती है और उपरोक्त गतिविधियों की अनुमति / प्रस्ताव दे सकती है।
पहाड़ी पर मांसाहारी भोजन और शराब के सेवन के निषेध पर अदालत ने कहा – ‘प्रतिवादियों का दावा है कि वे स्थानीय निवासियों को 2023 कार्यालय ज्ञापन में मांसाहारी भोजन और शराब के सेवन के निषेध के बारे में सूचित कर रहे हैं। लेकिन हमारी राय में, 2023 कार्यालय ज्ञापन द्वारा लगाये गये प्रतिबंधों के बारे में पारसनाथ पहाड़ी पर आने वाले कुछ स्थानीय लोगों / आगंतुकों को सूची तत्काल ही पर्याप्त नहीं हो सकती है। सख्त प्रवर्तन आवश्यक है।’
स्कूलों / आंगनबाड़ी में अंडे नहीं
पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित स्कूलों व आंगनवाड़ी में अंडे परोसने पर अदालत ने निर्देश दिया, ‘कार्यालय ज्ञापन 02-01-2023 में राज्य सरकार को विशेष रूप से पारसनाथ पहाड़ी पर मांसाहारी खाद्य पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया गया है। यदि ऐसे स्कूल और आंगनबाड़ी पारसनाथ पहाड़ी पर स्थित है, तो उनमें भी अंडे जैसे मांसाहारी भोजन के सेवन की अनुमति नहीं दी जा सकती है।’
पर्वत पर न शिकार, न बलि की अनुमति
बलि पर स्पष्टीकरण अदालत की इस बात से हुआ कि जब राज्य सरकार पहाड़ी पर जानवरों के शिकार और बलि की अनुमति नहीं दे सकती, क्योंकि ओएम में जानवरों को चोट पहुंचाने पर रोक है।
निष्कर्षों पर विचार करते हुए, अदालत ने सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, गिरिडीह को पारसनाथ पहाड़ी का दौरा करने का निर्देश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि –
1. क्या पारसनाथ पहाड़ी पर स्कूल / आंगनवाड़ी मौजूद है और क्या इस पर कोई खनन गतिविधि चल रही है?
2. पारसनाथ पहाड़ी पर कितनी संस्थाएं बनाई गई है और उनकी प्रकृति क्या है (वाणिज्यिक या आवासीय और सरकारी (निजी)
3. क्या उचित निर्माण, अनुमति दिये जाने के बाद ऐसी संरचनाओं का निर्माण वैध रूप से किया गया है?
अदालत ने इस बात पर भी गौर किया कि 2019 की अधिसूचना और 2023 के ओ एम में निहित निषेधाज्ञाओं को लागू करने के लिए केवल 25 होमगार्ड हैं। इस पर कहा कि पहाड़ी कम से कम 16 हजार एकड़ के भौगोलिक क्षेत्र को कवर करती है और प्रतिबंधों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए होमगार्ड की इतनी कम संख्या की उम्मीद नहीं की जा सकती।
अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया कि उपरोक्त दोनों के प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये पुलिस अधीक्षक पहाड़ी पर होमगार्डों की संख्या बढ़ायें।
निर्देशों के अनुपालन की निगरानी के साथ-साथ सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, गिरिडीह द्वारा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिये मामले की अगली सुनवाई 21 जुलाई की होगी।
इस पर पूरी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 3317 पर देख सकते हैं।
चैनल महालक्ष्मी चिंतन : अदालत द्वारा जारी यह अंतरिम आदेश जैन समाज के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, अगर यह अंतिम आदेश में परिवर्तित हो जाये, तो पारसनाथ की पवित्रता बरकरार रहेगी। पर गिरार की तरह 17 फरवरी 2005 का अंतरिम आदेश पर न तो कार्यान्वयन हुआ और ना ही अंतिम आदेश अभी तक परिवर्तित हुआ, ऐसा समाज कभी नहीं चाहेगा।