16 अप्रैल 2025 / बैसाख कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
श्री भियादांत जी से ओर नदी के उसे पर लगभग 2 किलोमीटर दूरी पर हमारे जैन संपदा ऐसे बिखरी पड़ी है l यदि कभी दर्शनार्थ जाना हो तो महोली ग्राम से रास्ता कच्चा लेकिन अच्छा है ।
मध्य प्रदेश में एक नगरी है।
जिसे देश भर में अनेक कारणों से जाना जाता है। एक हस्तकरघा से बनने वाली साड़ियों के कारण, तो दूसरा अपने प्रसिद्ध नौखंडा कीर्ति दुर्ग की विशालता के कारण, तो कभी चेदी जनपद से संबंधित शिशुपाल की नगरी से संबंधित होने की वजह से, और वर्तमान में निरंतर होती फिल्मों की शूटिंग के कारण।
हम बात कर रहे हैं,
ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी चंदेरी की जो अशोक नगर जिले में स्थित है। और मध्य प्रदेश की महत्वपूर्ण पर्यटन नगरी में शुमार हो चुकी है। लेकिन आप को जान कर अचरज हो सकता है।
इस चंदेरी से पहले भी एक और चंदेरी थी। जिसका अस्तित्व आज भी है।
उसे अब बूढ़ी चंदेरी कहा जाता है। यह मालवा बुन्देलखण्ड की सीमा पर उर्र नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित है।
माना जाता है कि 8वीं 9वीं शताब्दी के आसपास बूढ़ी चंदेरी को असुरक्षित मान लिया गया।
कुछ दूरी पर राजधानी इससे बड़ी और सुरक्षित पहाड़ी पर स्थापित कर दी गई। इस स्थान को भी चंद्राकार पहाड़ी पर स्थापित होने के कारण चंद्रपुर, चंद्रगिरी और चंदेरी कहा गया। इस लिए पहले वाली चंदेरी को बूढ़ी चंदेरी कहा जाने लगा।
बूढ़ी चंदेरी राजमार्ग क्रमांक19 पर पश्चिम दिशा में 8 किलोमीटर दूर घने जंगल में अवस्थित है। यह वर्तमान चंदेरी से करीब 20 किलोमीटर दूर है। पक्का सड़क होने से आसानी से यहां जाया जा सकता है। वीठला डांग बेरसीया महुअन चिमला मामलों सभी चन्देरी से 20कि मी के अंदर
बूढ़ी चंदेरी प्राचीनकाल की चंद्रपुरी ,गुर्जर प्रतिहार कालीन एक बड़ी बस्ती रही है।
यह स्थान जैन धर्म से संबंधित महत्वपूर्ण क्षेत्र भी रहा है।
आज भी तीन जिनालय ठीकठाक स्थिति में देखे जा सकते हैं। बाकी बड़ी संख्या मे टूट कर अपने वैभवशाली अतीत की कहानी बया कर रहे थे।
पास ही में एक बड़ा दरवाजा बना हुआ है। जो आकर्षक और ऐतिहासिक है। करीब 23फुट ऊँचा यह दरवाजा किसी बड़ी बस्ती का प्रवेश द्वार रहा होगा। दो सुंदर कन्या कलश लिए दरवाजे पर स्वागत करने के लिए उत्कीर्ण भी की गई थी। जिससे प्रतीत होता है कि यह दरवाजा कोई शाही दरवाजा रहा होगा। अंदर बहुत बड़ी संख्या में कमरे बने हुऐ हैं । इन कमरों से ऐसा लगता है कि यह बड़ी बस्ती रही होगी। इस स्थान से उर्र नदी निकली है।
स्थानीय लोग अब इस नदी को ओर नदी के नाम से जानते हैं। यह नदी यहां से वह बहुत दूर तक दिखाई देती है। अशोकनगर जिले की बेतवा और सिंध के बाद तीसरी सबसे प्रमुख नदी ओर ही है।
इस नदी का उद्गम स्थल भी जिले के प्राचीनतम नगरी तूमैन के निकट से ही है।
यह नदी प्राचीन काल की सांस्कृतिक गतिविधियों की साक्षी रही है। आज भी दर्जनों मठ मंदिर इस नदी के किनारों पर देखाई देते हैं। बूढ़ी चंदेरी के किले से बहती यह नदी इस बस्ती के लिए जल आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत भी रही होगी।
बहरहाल बूढ़ी चंदेरी में अब कोई नहीं रहता वीरान यह बस्ती अतीत में एक समृद्ध राजधानी थी। यहां मिले बड़ी बस्ती के अवशेष,मंदिर,मठ और महत्वपूर्ण नदी की मौजूदगी से ऐसा लगता है कि यह एक बड़ा नगर रहा होगा । पुरातत्व विभाग की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ 55 मंदिर के खण्डर बताये गये हैं। जो सभी दुर्ग की दीवार से घिरे थे। इनमें अधिकांश जैन धर्म से संबद्ध है। कुछ मंदिर शैव और वैष्णव संप्रदाय से संबंधित भी हैं। जो 8वीं से 10वी शताब्दी के दरम्यान निर्मित प्रतीत होते है।
कहा जाता है कि यहाँ गुर्जर प्रतिहार शासकों की एक प्रवरती शाखा की राजधानी थी रही है। जिसके शिलालेख कदवाया, पचराई, थूबोन और चंदेरी से प्राप्त हुए हैं।
यह अच्छा है कि केन्द्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा इन स्मारकों को राष्ट्रीय धरोहर की मान्यता दे कर संरक्षित कर लिया गया है। आज इन इमारतों को देखने का अनुभव आपको एक अनोखे रोमांच से अवगत कराता है। हैरान वीरान यह नगर अब बूढ़ा हो गया है। लेकिन अतीत के अनकहे किस्से अपने आंचल में समेटे यह बूढ़ी चंदेरी भारत के गौरवशाली इतिहास को समझने में सहायता करती है।
और जेहन में छोड़ देती है। कुछ सवालों को……!
संकलन :- जयेन्द्र जैन निप्पूभैया