21 जून 2022/ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जैन योग का नया अभ्युदय – अर्हम् योग
दिगंबर संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज के विद्वान शिष्य मुनि श्री प्रणम्यसागर जी विगत कई वर्षों से अर्हं योग शिविरों का प्रायोगिक आयोजन कर रहे हैं | निश्चित रूप से यह जैन योग के क्षेत्र में एक बड़ा कदम है | उनकी एक पुस्तक ‘अर्हं योग एवं ध्यान’ प्रकाशित हुई है जिसमें यह विधि महत्व के साथ दी गयी है |यहाँ संक्षेप में हम उसी अर्हं योग की विधि और महत्व को समझने का प्रयास करेंगें |
अर्हम् योग क्यों?
प्रौद्योगिकी, औद्योगीकरण और जनसंख्या के इस युग में, हम लगातार जबरदस्त तनाव विकल्पों के अधीन हैं। इनमें उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और हृदय की समस्याओं के विभिन्न प्रकार के मनोदैहिक रोगों का उत्पादन होता है । निराशा में लोग खतरनाक दवाओं को पीने और खाने के लिए लेते हैं, जो अस्थायी राहत देने के लिए होते हैं, लेकिन और अधिक गंभीर समस्यायें पैदा करते हैं । अर्हम् थेरेपी, मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य की दिशा में एक समग्र दृष्टिकोण के लिए कार्यरत है । अर्हम् योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है अपितु ध्यान के साथ चित्त और आत्मा को स्थायी प्रभाव (deep impact) देता है ।
अर्हं योग अर्थात् अहं का विसर्जन-
मानव जीवन के विकास में सबसे ज्यादा बाधक उसका स्वयं का अहं भाव है । देह के प्रति, वासनाओं के प्रति और मनोभावों के प्रति अहं भाव आध्यात्मिक विकास में बाधक है । आध्यात्मिक विकास के बिना मनुष्य अपने जीवन में किसी भी प्रकार के धन, वैभव और समृद्धि से सुख-शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता । शब्द विज्ञान के अनुसार ‘र’ शब्द अग्नि तत्त्व का द्योतक है । अर्हं का ध्यान एवं नाद उस अहं को जलाकर हमें सहज-सरल बनाता है और मानवोचित कार्य करने की प्रेरणा देता है ।
मुनि श्रीप्रणम्यसागर जी महाराज ने पंच नमस्कार मुद्रा का स्वरूप बताकर सभी प्राणियों को प्रतिदिन इन्हें जीवन में अपनाकर अपने जीवन को स्वस्थ एवं सुन्दर बनाने का उपदेश दिया है यह पंच नमस्कार मुद्रायें निम्न प्रकार हैं-
पंच नमस्कार मुद्रा
ये पांच मुद्राएँ पञ्च परमेष्ठियों के नाम पर आधारित हैं |इन मुद्राओं को करने से आध्यात्मिक लाभ के साथ साथ अनेक लौकिक लाभ भी हैं जैसे
१.अरिहंत मुद्रा
इससे आलस्य दूर होता है ।कमर एवं रीढ़ की हड्डी सम्बन्धी रोग दूर होते हैं ।कद बढ़ता है ।नई ऊर्जा का संचार होता है ।मोटापे में कमी आती है ।
२.सिद्ध मुद्रा
इससे ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है । हृदय संबंधी रोगों में आराम मिलता है । श्वास सम्बन्धी बीमारी ठीक होती है ।इसके लगातार अभ्यास से अपनी ऊर्जा को नाप सकते हैं।
३.आचार्य मुद्रा
इससे एकाग्रता बढ़ती है ।स्मरण शक्ति बढ़ती है ।मानसिक तनाव में कमी आती है ।कंधे मजबूत होते हैं ।
४.उपाध्याय मुद्रा
इससे सर्वाईकल (गर्दन) के दर्द में आराम । फ्रोजन सोल्डर में आराम । कलाई के दर्द (कन्धे के दर्द) में आराम मिलता है । ज्ञान की वृद्धि होती है ।
५. साधु मुद्रा
इससे विनम्रता का विकास होता है । सकारात्मक सोच की वृद्धि होती है ।पेट-पीठ सम्बन्धी रोग में आराम मिलता । अनिद्रा में लाभ मिलता है ।डायबिटीज आदि रोगों से छुटकारा मिलता है ।
कायोत्सर्ग अर्थात् काया का उत्सर्ग (Leave Soul Aside)
महान् जैन तीर्थंकरों, आचार्यों एवं मुनियों के द्वारा दी गई कायोत्सर्ग की विधि अपनी आत्मा को शरीर से अलग कर आत्मस्वभाव में आने का माध्यम है । कायोत्सर्ग अवस्था में योगी, श्रावक अपने ध्यान की क्रियाओं से शरीर को स्वयं से अलग कर देता है तथा अपने आत्मा के अनन्त सुखों का अनुभव करता है । वह केवल होने की स्थिति (State of Being Alone) के द्वारा इसी कायोत्सर्ग के माध्यम से अपने अस्तित्व की पहचान करता है ।
१. पद्मासन मुद्रा
२. खड्गासन मुद्रा
भगवान् ऋषभदेव की पद्मासन मुद्रा व भगवान् बाहुबली की खड्गासन मुद्रा हमें इसका परिचय देती है । देव वन्दना से पूर्व, धार्मिक अनुष्ठान करने से पूर्व व उपरान्त सामायिक, प्रतिक्रमण आदि के समय कायोत्सर्ग एक आवश्यक क्रिया है, जिससे हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर सकें ।इससे मानसिक तनाव दूर हो जाता है जिससे साधक ध्यान के लिए स्वयं को तैयार कर सकता है | कायोत्सर्ग से मानसिक एवं शारीरिक शक्ति का विकास होता है जिससे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है |
इस कायोत्सर्ग की प्रक्रिया में श्वासोच्छ्वास पर ध्यान देते हुए उनको गिना जाता है, तथा साथ ही णमोकार जैसे महाप्राण मंत्र का उन श्वासों पर आरोहण किया जाता है । जिससे यह प्रक्रिया ना केवल शारीरिक रोगों अपितु मानसिक विकारों को दूर करती है तथा आत्मा में जन्म-जन्मान्तर से बंधे हुए कर्मों को भी जलाती है । इसी प्रक्रिया से योगी केवलज्ञान प्राप्त करते हैं। जब २७ बार श्वासोच्छ्वास को गिना जाता है, तब एक कायोत्सर्ग पूर्ण हो जाता है । साथ ही ०९ बार णमोकार मंत्र का पाठ हो जाता है ।
अर्हम् अन्तरनाद ( ऊर्जा शक्ति केन्द्रों पर अन्तरनाद)
ॐ अथवा ओंकार का नाद ब्रह्म का सर्वोच्च उदगान माना जाता है । इसे परमात्मा का वाचक पद (Voice of God) कहा गया है । ‘तस्य वाचकः प्रणवः ओमित्यकाक्षरं ब्रह्म, प्रणवश्छन्दसामहम्’ ओम् का अर्थ है- जिससे परमात्मा की स्तुति की जाए । इसलिए ॐ एवं अर्हम् का उच्चारण करने से नाद (Song of God) की उत्पत्ति हो जाती है, जो हमारे शरीर के ऊर्जा चक्रों (Enregy Centers) को स्वतः ही जागृत कर एक असीमित अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति से भर कर मनुष्य को उच्च आध्यात्मिक स्तर पर ले जाता है । यह प्रक्रिया नियमित अभ्यास की है तथा वर्षों तक अभ्यास करने से स्वतः उच्चतर आध्यात्मिक स्थितियों की प्राप्ति होती है ।
णमोकार महामंत्र पंच परमेष्ठी का वाचक मंत्र है तथा ॐ एवं अर्हम् बीजाक्षर का विस्तार है । अर्हम् एवं णमोकार महामंत्र के उच्चारण से हमारे शरीर में उत्पन्न नाद (ध्वनि) से एक-एक ऊर्जा चक्र को प्रभावी बनाकर ऊर्ध्वगामी ऊर्जा का संचार करके विशिष्ट शक्ति केन्द्रों को जाग्रत किया जाता है । हमारे पूर्वाचीन ऋषि मुनियों, योगियों ने णमोकार मंत्र की साधना एवं अर्हम् योग से अपना कल्याण कर मोक्ष प्राप्त किया है । अतः निम्न मंत्रों का उच्चारण प्रतिदिन प्रातःकाल किया जाना चाहिए।
ॐ ह्रीं अर्हं नमः। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं अर्हं नमः।
ॐ की तरह अर्हम् नाद भी जब मस्तिष्क में गुंजायमान होता है, तो वह सभी प्रकार के अहम् भाव से मुक्त कराकर एक अदृश्य लोक में पहुंचा देता है । इसे अर्हम् (Chanting) मंत्रोचार कहते हैं।
प्राणायाम
प्राणायाम हमारे प्राणों के आयाम को बढ़ाने की प्रक्रिया है । इसे प्राचीन योगियों ने अन्वेषित कर मनुष्य को दीर्घायु बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है । प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों से मनुष्य के श्वासोच्छ्वास का नियमन होकर आयाम में वृद्धि होती है, जो मानव चित्त को शांत एवं स्थिर कर देती है । इसके द्वारा शरीर के विभिन्न शक्ति केन्द्रों पर एक विशेष प्रभाव होता है, जो उन्हें विशेष ऊर्जावान बनाकर मानव को असीमित योग्यताओं से लाभान्वित करता है ।
अर्हम् प्राणायाम के विभिन्न चरण- यह तीन चरणों में शामिल है-
१. अनुलोम-विलोम प्राणायाम
२. भस्त्रिका प्राणायाम
३. कपाल भाति प्राणायाम।
प्राणायाम के उद्देश्य- प्राणायाम निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करता है-
• दीर्घायु
• विकास, विस्तार और महत्त्वपूर्ण ऊर्जा का नियंत्रण
• भौतिक शरीर और आत्मा के बीच एक कड़ी का निर्माण
• शारीरिक और मानसिक विकारों के उपचार
• सहानुभूति और तंत्रिका प्रणाली के बीच सद्भाव
• मधुर वाणी, गायन की विशेष योग्यता, स्मरण शक्ति में वृद्धि ।
अर्हम् योग के लाभ-
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी के अनुसार अर्हम् योग मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का ,मनुष्य के स्वाभाविक गुणों के साथ साथ विश्व मैत्री एवं शांति की भावना का विकास
होता है | इससे मनुष्य अध्यात्म के उच्च स्तर पर पहुंच सकता है तथा आत्मानुभूति को प्राप्त कर सकता है | सही एवं उचित मार्गदर्शन में किया गया अर्हम् प्राणायाम अनेक रोगों का उपचार करने में भी सक्षम है क्योंकि यह शरीर की रक्त धमनियों के माध्यम से ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह पूरे शरीर को रोक देता है ।जैसे अनुलोम-विलोम से पेट की बीमारियां ठीक हो जाती हैं तथा रक्त शुद्ध होकर शरीर ऊर्जा से भर जाता है ।प्राणायाम श्वास दर को नियंत्रित कर रक्तचाप को ठीक कर देता है तथा मानसिक तनाव (Mental Stress)को दूर कर देता है । यह मानसिक एकाग्रता तथा दिव्य शक्तियों को प्राप्त करने में सहायक है ।
डॉ .रूचि अनेकान्त जैन (M.Sc.& Phd in Yoga and Meditation), नई दिल्ली
ruchijaintmu@gmail.com